यह भी जरूरी नहीं कि अब तक आपका जीवन अच्छा नहीं बीता तो आगे क्या होगा? आयु के किसी भी मोड़ पर आप खड़े हो चाहे आपका जीवन अभी आरम्भ हुआ है अर्थात अभी जीवन के आरम्भिक काल में हो, अथवा आयु के मध्य में हो या जीवन का उत्तरार्ध आ गया है अथवा जीवन की सांझ होने वाली है।
जहां से भी जीवन को सुधार लोगे वहीं से अच्छा है। संकल्प दृढ़ रखना चाहिए। यह भी ध्यान रखे कि यदि आप साधना करना चाहते हैं तो श्रेष्ठ विचार है। साधना एक अभ्यास है अच्छाई का अभ्यास। बुराई का अभ्यास तो जीवन में चल ही रहा है। बुराई इतनी तेजी से आदमी पर हावी होती है कि आदमी संकल्प करता है अच्छा बनने का परन्तु बुरे संस्कार जो चित्त पर पड़े हैं वे आदमी को गलत मार्ग पर खींच ले जाते हैं।
हम सब अपनी-अपनी आदतों के गुलाम है। वैसे आदते भी अभ्यास से ही बनती है। हर बार जिस चीज का अभ्यास किया गया वही आदत बन जाती है। आप अच्छाई का अभ्यास करते हुए अच्छाई के लिए आग्रह कीजिए। पुराने संस्कारों के कारण यदि बुरा हो भी जाये तो उसके लिए प्रायश्चित करना चाहिए।
प्रायश्चित के लिए अपने लिए दण्ड स्वयं निश्चित करिए। अपने जज स्वयं बनने पर यह ध्यान रखे कि दंड ऐसा हो, जिससे किसी की सहायता हो सके, किसी का भला ही सके किसी का उपकार हो सके।