जिज्ञासु प्रभु से प्रार्थना करता है ‘असतो मा सद्गमय तमसो मा ज्योर्तिगमय’ अर्थात प्रभु मुझे असत्य से सत्य की ओर अंधेरे से प्रकाश की ओर ले चल। प्रकाश का अर्थ मात्र उजाला नहीं, प्रकाश का अर्थ ज्ञान भी है अर्थात प्रभु से प्रार्थना की जा रही है कि मुझे अज्ञान के अंधकार से ज्ञान के प्रकाश की ओर ले चल।
उजाले का सदुपयोग भी हम ज्ञान के प्रकाश में ही सही-सही कर सकेंगे। समाज में प्रकाश की आवश्यकता आज अधिक महसूस की जा रही है, क्योंकि वास्तविक प्रकाश जीवन को सौंदर्य प्रदान करता है, वस्तुओं को आकार देता है, शिल्प देता है, रंगत प्रदान करता है। प्रकाश मानव के भीतर ज्ञान का संचार करता है और अंधकार को समाप्त कर जीवन को सही मार्ग दिखाता है।
नकारात्मक दृष्टिकोण दूर कर सकारात्मक दृष्टि और सोच प्रदान करता है। खुली आंखों से सही-सही देख न पाये तो समझना चाहिए कि यह अंधेरा बाहर नहीं हमारे भीतर ही कहीं घुसपैठ किये बैठा है, जबकि जीवन में प्रकाश का अभाव है ही नहीं। प्राचीन काल में स्वार्थ कम जबकि स्नेह सौहार्द अधिक था। आज उसमें कमी आ गई है।
इसका एक कारण धन के प्रति अधिक आकर्षण और नकारात्मक चिंतन जहां सकारात्मक चिंतन का विकास होता है, वहां सम्बन्धों में सौहार्द बढ़ता है। इसके लिए जरूरी है व्यक्ति अपने भीतर झांके। अन्तर्दृष्टि को जागृत कर नया प्रकाश प्राप्त करे। सेवा के द्वारा उसी नये प्रकाश को प्राप्त कर सकते हैं। वह प्रकाश ईश्वरत्व का बीज है स्वयं से स्वयं के साक्षात्कार का मार्ग है।