एक रोचक दृष्टान्त- एक ने कहा यह मेरे बाप का मकान है, दूसरे ने कहा यह तेरे बाप का नहीं मेरे बाप का है। बादशाह जिसके अनगिनत संतानें थीं, ने पूछा कि भाई तुम्हारा बाप है कौन? किसके मकान पर झगड़ा हो रहा है? दोनों ने एक स्वर में कहा कि हमारा जो बाप है वह बगदाद का बादशाह है। उसने कहा- भाई बगदाद का बादशाह तो मैं ही हूं। अगर तुम दोनों मुझे अपना बाप बताते हो तो तुम दोनों मेरे बेटे हो और दोनों आपस में भाई-भाई हो। जब उन लड़कों को पता लगा कि हमारा बाप एक है, हम दोनों भाई-भाई हैं तो उनके अंदर वह झगड़ा करने की भावना, वह विषमता और वैमनस्यता की भावना समाप्त हो गई और वे आपस में गले लग गए।
यही बात हम सबके साथ लागू होती है कि हम नहीं जानते हैं कि आखिर भगवान क्या है? उसकी हमें अनुभूति नहीं है। फल स्वरूप क्षेत्र भाषा और परम्पराओं के आधार पर हमने तेरा और मेरा भगवान कहकर भगवान को ही बांट दिया और आपस में लड़-मर रहे हैं।
जब हमें अध्यात्म ज्ञान प्राप्त होगा, परमपिता परमात्मा की प्रत्यक्ष अनुभूति होगी, तब हमें पता चलेगा कि जो मेरा भगवान है वहीं सबका भगवान है और तभी जाकर हम एक हो सकेंगे। एकता के लिए परमात्मा की अनुभूति करनी ही होगी। धर्म के उस मूल तत्व को जानना होगा, जो मानव मात्र के लिए एक है, तभी यह मेरा-तेरा का झगड़ा समाप्त हो पायेगा।