जिज्ञासु शिष्य ने गुरू से प्रश्र किया ‘जब मानव जीवन अनिश्चित है, काल का पहिया निरन्तर घूमता जा रहा है और समस्याएं मानव को डसती जा रही है तो फिर जीने की सर्वोत्तम राह क्या है? आखिर अनन्त चिंताओं और दुविधाओं के कुचक्र से बाहर निकलने और मानसिक शान्ति पाने का कोई तो मार्ग होगा कृपया मार्ग दर्शन करें।
गुरू ने कुछ विचार कर उत्तर दिया ‘पानी के बहाव को कभी गौर से देखा है उसे बहने के लिए किसी मार्गदर्शन की आवश्यकता नहीं होती। वह अपनी दिशा स्वयं तय करता है। जीवन में समस्याओं की प्रकृति भी ऐसी ही होती है। ये आती है फिर गुजर भी जाती हैं। परेशानी तब होती है जब हम भविष्य की समस्याओं को भी आज ही सुलझा लेना चाहते हैं।
जीवन में दूरदर्शी बनना अच्छी बात है, लेकिन भविष्य की तमाम समस्याओं के बारे में सोच-सोचकर जान हलकान करने में जीवन की कोई समझदारी परिलक्षित नहीं होती। यदि हम पल-पल जीये तो जीवन अनगिनत समस्याओं से सुरक्षित रह पाता है।
इसका आशय यह भी है कि हमें वर्तमान में जीना आना चाहिए। बीते काल के पश्चाताप के बोझ और आने वाली कल की चिंता से जिस किसी ने भी अपने जीवन को बचा लिया, वही समस्याओं के महाभारत में अक्षय और अजेय बनकर बाहर आ पाता है।