आप बलपूर्वक किसी की मांग का सिंदूर बन सकते हैं, परन्तु बलपूर्वक किसी के अनुराग का सिंदूर नहीं बन सकते। यदि आपको अपने जीवन साथी का हृदय जीतना है तो आपको उससे हारना पड़ेगा। बहुत अवसरों पर हमें लगता है कि जीत हमारी ही होनी चाहिए, परन्तु नहीं, अपनों से हारना ही हमारी जीत ही तो है। यह खूबसूरती है गृहस्थ जीवन की। समय बीतता जाता है और आप में गहरा प्रेम है तो आपकी शक्ले भी एक जैसी प्रतीत होने लगती है, इतना बड़ा प्रभाव प्रेम का पड़ता है।
एक प्रसंग रामायण का.. केवट की नाम में बैठकर जब श्रीराम, लक्ष्मण और माता सीता नदी पार करके पहुंचे, तब भगवान राम को लगा कि केवट को कुछ देना चाहिए। सीता माता अपने स्वामी के मन में चल रहे विचार मंथन को समझ गई और झट से अपनी मुद्रिका केवट को देने के लिए श्रीराम के हाथों में दे दी। यह एक-दूसरे के प्रति समर्पण का शिखर है कि बिना कहे अपने साथी की बात को समझ जाना, परन्तु आज के समय अनेक लोगों ने अपने गृहस्थ जीवन को नरक बना रखा है।
एक-दूसरे को सहन ही नहीं करना, ऐसा व्यवहार करना कि जैसे वे जीवन साथी नहीं शत्रु हों। ऐसे गृहस्थ में बच्चों में भी अच्छे संस्कार नहीं आ पाते।
जो पति-पत्नी आपस में मित्रवत व्यवहार करते हैं उस गृहस्थ में सच्चे अर्थों में स्वर्ग उतर आता है। करक चतुर्थी (करवा चौथ) का यही संदेश है।