यदि मन में अंधकार है तो जीवन में भी अंधकार होगा। मन में ही इच्छाएं जन्म लेती हैं, मन में ही लाल सासें पैदा होती है। मन ही हमें कुमार्ग पर चलने को उकसाता है। इन सब प्रपंचों से बचने के लिए मन को समझाओ, मन की साधना करो, क्योंकि आप ही इस शरीर रूपी रथ के स्वामी हो।
मन तो आपका (आत्मा का) सारथी है। उसे अपने नियंत्रण में रखिए, यदि नियंत्रण में नहीं रख पाये तो वह स्वामी को किसी खाई में भी धकेल सकता है, जहां से निकल पाना आपके लिए दुर्लभ हो जायेगा।
इसलिए मन को आदेश करो कि वह छल-कपट से दूर रहे, मन के अंधकार को मिटाओ, उसमें उजाला स्थापित करो। अंधकार मिटेगा तो भ्रम भी मिट जायेंगे। स्वार्थ समाप्त हो जायेंगे। तब आप अपने आप तक सीमित नहीं रह पाओगे, दूसरों के शुभ के लिए भी सोचोगे। ऐसे में आप प्रभु कृपा के पात्र बन जाओगे, उस समय यह अनुभूति होगी कि मुझे प्रभु कृपा के रूप में सच्ची दौलत प्राप्त हो गई है। इसी दौलत से तो यह जन्म भी सुधरेगा और अगला भी।
मानव जीवन अंतिम परीक्षा मृत्यु है, जिसका जीवन सुधर गया उसकी मृत्यु भी सुधर जायेगी। जीवन उसका सुधरता है, जिसका समय सुधरता है। समय उसी का सुधरता है, जो समय के मूल्य को जानता है। इसलिए क्षण-क्षण और कण-कण का उपयोग करना चाहिए।