आज बाल दिवस है। उनके लिए यह संदेश है कि जो भी कार्य आपको दिया जाये उसे इतनी कुशलता और सहजता के साथ कीजिए कि वह आपकी पहचान बन जाये। कर्म में कुशलता का नाम ही योग है।
बच्चों की शिक्षा में शिक्षा पद्धति का बहुत बड़ा महत्व है। एक मांटेसरी पद्धति है, जिसमें खेल-खेल में बच्चों को पढ़ाने की प्रक्रिया अपनाई जाती है। हवर्ट पेंसर कहते हैं कि यदि आप बच्चों को पढ़ाने के लिए बच्चों के बीच बैठो तो पहले बाल मनोविज्ञान को समझो। बच्चों की रूचियां क्या-क्या हैं, उसे ध्यान में रखकर चलो।
गुरू रवीन्द्रनाथ टैगोर ने शांतिनिकेतन की स्थापना के समय कहा था कि बच्चों के अंदर जो प्रतिभाएं हैं, उन्हें विकसित करने की कोशिश करो। उन्होंने कहा कि स्कूलों के ऊपर छत की आवश्यकता नहीं है। प्रकृति के प्रांगण में बच्चों को पढ़ाओ। शिक्षा के लिए यदि आप बच्चों के सिर पर बोझ रखोगे तो उन्हें पूर्ण शिक्षित नहीं कर सकते। ठीक इसी प्रकार से जीवन में कर्म करते हुए यदि इंसान कर्म को बोझ बना ले तो वह जीवन में सफल नहीं हो सकता। ईश्वर की भक्ति और जीवन में कर्तव्यों को कभी बोझ नहीं बनाना चाहिए।
हंसते-हंसते मुस्कराते यदि हम जीवन में कर्म करने वाले बन जाये तो जीवन के हर क्षेत्र में सफल हो सकते हैं। इंसान के जीवन में अन्वेषण और संघर्ष निरन्तर चलता रहता है। मानव अपनी अतृप्ति को तृप्त करना चाहता है, न्यूनता को पूर्णता की ओर ले जाना चाहता है, अपना खालीपन भरना चाहता है, इसलिए जीवन भर पूर्ण होने का अन्वेषण जारी रहता है।