आज के युग में अधिकांश व्यक्ति पुत्री की अपेक्षा पुत्र संतान की कामना करते हैं। पुत्र जन्म पर उत्सव मनाते हैं और पुत्री के जन्म पर शोक करते हैं। कुछ तो पुत्रियों को उनके जन्म से पहले गर्भ में ही हत्या कर जघन्य पाप करते हैं।
पुत्र संतान की प्राप्ति इतनी महत्वपूर्ण नहीं जितना महत्वपूर्ण है पुत्र-पुत्रियों को सुसंस्कार देना। पुत्र की प्राप्ति तो ईश कृपा से होती है, उसमें माता या पिता का कोई श्रेय नहीं। श्रेय तो उन माता पिता को मिलेगा, जिसने अपनी संतान चाहे वह पुत्र हो अथवा पुत्री हो सुसंस्कारित किया। आप एक नहीं दस पुत्रों को जन्म तो दे सकते हैं, परन्तु यदि उन्हें सुसंस्कारित न किया तो आप पाप के भागी बनेंगे।
इतिहास में ऐसी कई कन्याओं के उदाहरण हैं, जिनके माता-पिता को पुत्र संतान नहीं थी और उनकी पुत्रियों ने ही अपने महान कार्यों से उन्हें इतिहास में अमर कर दिया। प्राचीन और अर्वाचीन दोनों काल के इतिहास इसके साक्षी हैं। पुत्र हुआ और उसने अपने कुकर्मों से स्वयं अपना तथा अपने माता-पिता के नाम को शर्मशार किया तो ऐसे पुत्रों से संतानहीन होना ही अच्छा और पुत्रियां तो पुत्रों से हर क्षेत्र में आगे निकल रही हैं।
आज के अधिकांश पुत्र तो माता-पिता की उपेक्षा, उन्हें अपमानित करने में लज्जा महसूस नहीं करते, जबकि कन्या ससुराल में भी माता-पिता के कुशल क्षेम की चिंता करती है। ऐसे पुत्रों से पुत्रियां सहस्रो गुणा श्रेष्ठ है। भगवान से प्रार्थना करे वह पुत्र दे अथवा पुत्री परन्तु ऐसी संतान दे जो अपने साथ-साथ माता-पिता का नाम भी सार्थक कर दे।