Saturday, May 18, 2024

लघुकथा: प्रेमांध

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उसने तनिक भी नहीं विचारा था कि घर के बाहर कदम रखना उसे इतना भारी पड़ जाएगा कि घर लौटने का मार्ग ही उसके लिए बन्द हो जाएगा। परिजन को न जाने कैसे भनक लग गई कि वह ट्यूशन पढऩे के बहाने घर से निकलती है और प्रेमलीला में अपना समय गुजारती है तथा उसका प्रेम इतना परवान चढ़ चुका है कि सहेली के घर जाने का बहाना बनाकर वह मंदिर में जाकर ब्याह भी रचा चुकी है।
उस दिन वह विवाह का पंजीयन कराने कचहरी पहुंची थी कि परिजन जा धमके। परिजन के लिए यह स्थिति असहनीय थी तो सुहानी के लिए प्रत्याशित एवं अकल्पनीय। उसके चेहरे की हवाइयां उड़ गईं, उसकी चोरी जो पकड़ी गई थी। प्रेमी सलिल को कुछ भी नहीं सूझ रहा था, तब उनके वकील ने दोनों को स्थिति से बखूबी निपटने की सलाह दे डाली थी कि जैसे भी हो पुलिस के वरिष्ठ अधिकारी के सम्मुख जाकर बैठ जाना, एक-दूसरे के हाथों में हाथ डालकर दृढ़ता का परिचय देते रहना तथा अपने ही परिजनों के विरुद्ध खुलकर शिकायत करना कि उन्हें अपने परिजनों से जान का खतरा है, उनके परिजन उनके विवाह को स्वीकार नहीं कर रहे हैं।
सुहानी कठोर हो गई। सलिल के प्रेम में अंधी होकर अपना सर्वस्व जो लुटा चुकी थी, सो सलिल को किसी भी कीमत पर वह खोना नहीं चाहती थी। उसने वरिष्ठ पुलिस अधिकारी के सम्मुख वही दोहराया, जो वकील ने उसे तोते की तरह रटाया था। पलक झपकते ही सुहानी इतनी कठोर बन जाएगी, किसी ने स्वप्न में भी नहीं विचारा था। बात-बात पर मां का साथ निभाने वाली सुहानी अपनी मां को देखते ही बिफर गई- ‘तुमने मुझे क्या दिया… मेरा ख्याल सदैव सलिल ने ही रखा है, सलिल मेरा पति है, इससे मैं अलग नहीं रह सकती। यदि मुझे मेरे पति से अलग करने का प्रयास किया तो मैं हाथ की नस काट लूंगी, आत्महत्या कर लूंगी…मगर तुम्हारे साथ घर वापस नहीं जाऊंगी।
मां कुछ समझ न पाई, उसकी कलाई फूट पड़ी- ‘जरूर मेरी बेटी पर टोना-टोटका किया गया है। जिस सलिल को परिवार का सदस्य मानकर पनाह दी, उसी ने घर की इज्जत पर हमला कर दिया। घर की बेटी को अपने वश में करके परिजनों के विरुद्ध कर दिया।
मां सुहानी केे सम्मुख बहुतेरी गिड़गिड़ाई। परिजन एवं सम्बन्धी भी सुहानी के सम्मुख हाथ बांधे खड़े रहे कि जैसे भी हो सुहानी परिवार की इज्जत को बट्टा न लगाए, मगर सुहानी पर किसी का कोई प्रभाव नहीं पड़ा। परिजन विचारमग्न थे, उन्हें सुहानी का भविष्य अंधकारमय प्रतीत हो रहा था। जिसे कलेजे का टुकड़ा मानकर अपने मुंह का निवाला भी खिला दिया था, वही सुहानी अपने परिजनों पर हत्या की आशंका का आरोप लगा रही है।
पिता का कलेजा मुंह को आ गया। आंखों से अश्रुधारा बह निकली, उन्हें सूझ नहीं रहा था कि क्या करें, स्थिति से कैसे निपटें, सो कलपकर रह गए, बार-बार यही शब्द उनके मुंह से फूट रहे थे- ‘सुहानी… इतना बड़ा अत्याचार मत कर, हमारी भावनाओं का मजाक मत उड़ा… इतनी कठोर मत बन…हमारी बेबसी को समझ या मत समझ, मगर हमारी खुशियों को पैरों तले मत रौंद… परिवार की इज्जत का कुछ तो ख्याल कर…।
माता-पिता के आंसू भी सुहानी को न पिघला सके। मां को यकीन नहीं हो रहा था कि सुहानी इतनी निष्ठुर हो जाएगी, सो बेसुध हो गई। अन्य परिजन एवं सम्बन्धियों को भी जैसे लकवा मार गया। वे भी कुछ सोचने-समझने की स्थिति में नहीं रह गए थे।
प्रेमांध सुहानी के लिए जैसे अपने परिजनों की भावनाओं का कोई मोल ही नहीं रह गया था, सो वह निष्ठुर बन परिजन से ऐसे मुख मोड़ गई, जैसे सभी उसके लिए अपरिचित हों तथा उसका उनसे कोई सरोकार ही न हो।
डॉ. सुधाकर आशावादी – विभूति फीचर्स

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