देश में जिस तरह से दिवाली पर खुलकर बाज़ार सामने से आ इसे व्यापार और इकॉनमी के लिए प्रमोट कर रहें हैं ,वह खुले तौर पर एक संकेत देता है. भारत की आत्मा एक उत्सवधर्मी प्रकृति की रही है. अगर भारत का विकास उसके आत्मा या प्रकृति के विपरीत किया जायेगा तो विकास में घर्षण या संघर्ष हमेशा रहेगा और वांछित फल नहीं प्राप्त होगा. बात सन 2016 की है. मैं सड़क मार्ग से लखनऊ से गोरखपुर जा रहा था और रास्ते में अयोध्या से गुजर रहा था।
अयोध्या आया और गुजर गया. एक यात्री के तौर पर कुछ पता ही नहीं चला कि विश्व के लगभग 15 % आबादी का सबसे महत्वपूर्ण केंद्र अयोध्या है और यह भारत के विभिन्न हिस्से ही नहीं, लगभग विश्व भर में फैले हिन्दुओं चाहे वो इंग्लैंड ,स्कॉटलैंड, अमेरिका, यूरोप के अन्य देश, ऑस्ट्रेलिया , मॉरीशस , फिज़ी,गुयाना, त्रिनिदाद, थायलैंड, कंबोडिया, इंडोनेशिया, सिंगापुर एवं अन्य देश हो, की मन: स्मृति में अयोध्या की कहानी और इतिहास अंकित है और ऐसे लोग अगर अयोध्या से गुजरें और यह शहर खामोशी से गुजर जाये तो इसे इस देश की नाकामी ही कहेंगे।
राम मंदिर का विवाद एक जगह था. इसे अगर किनारे रख देवें ,तब भी इस शहर पर काम होना चाहिये था। जैसे हमने ताजमहल को एक धर्म विशेष का मजार होने के बावजूद भी धर्म निरपेक्ष मानते हुये पूरे विश्व में टूरिज़्म के नाम पर प्रचार प्रसार किया, वैसे भारत की ऐतिहासिक विरासत हिन्दू धर्म के पौराणिक स्थल को लेकर भी एक विश्व स्तरीय टूरिज़्म प्लान बनना चाहिये था । यह भारत के अर्थव्यवस्था में एक नये दृष्टिकोण के साथ बड़ी सफलता के एक अध्याय जैसे जुडऩा होता।
भारत में पर्यटन पूंजी के तौर पर अयोध्या समेत अन्य पौराणिक स्थल जिसमें मथुरा, काशी, 12 ज्योतिर्लिंग, 51 शक्ति पीठ, चारों धाम, चारो शंकराचार्य के स्थान के अलावा वैष्णो देवी मंदिर, सिद्धिविनायक मंदिर, गंगोत्री एवं यमुनोत्री मंदिर उत्तराखंड, स्वर्ण मंदिर अमृतसर , अमरनाथ , लिंगराज मंदिर उड़ीसा, गोरखनाथ मंदिर, कांचीपुरम मंदिर, खजुराहो मंदिर, विरूपक्षा मंदिर हम्पी, अक्षरधाम मंदिर गुजरात, गोमतेश्वर मंदिर कर्नाटक, साईं बाबा मंदिर शिर्डी, श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर केरल, लक्ष्मी नारायण मंदिर दिल्ली, रंगनाथस्वामी श्री रंगम, पद्मावती मंदिर तिरुपति, एक्म्ब्रेश्वर मंदिर कांची, कामाख्या मंदिर असम, कालीघाट मंदिर कोलकाता, छतरपुर मंदिर दिल्ली, सूर्य मंदिर कोणार्क, बृहदीस्वरा मंदिर तंजावुर, सोमनाथ मंदिर गुजरात, तिरुपति बाला जी देव स्थानम आंध्र प्रदेश, चिरकुल बाला जी हैदराबाद, यादाद्रि मंदिर तेलंगाना, मीनाक्षी मंदिर मदुरै, कनक दुर्गा विजयवाड़ा आदि ऐसे अनेक मंदिर हैं जिसकी सरकार चाहे तो अलग अलग टूरिस्ट सर्किट बना कर टूरिज़्म विकसित कर सकती है और इन शहरों को इनकी धार्मिक प्रसिद्धि के हिसाब से थीम सिटी के रूप में विकसित कर सकती है।
भारत के पास सिर्फ हिन्दू सनातन का ही यह टूरिस्ट सर्किट नहीं मौजूद है. विश्व भर मे फैले बुद्ध समाज के लिए हमारे पास सिद्धार्थनगर, रामग्राम,कुशीनगर, सारनाथ, कलिंग, सांची स्तूप आदि महत्वपूर्ण स्थान हैं जहां हम विश्व भर के कई देशों जैसे कि श्रीलंका, थायलैंड, चाइना, म्यांमार जैसे अन्य देशों से इन स्थानों का टूरिस्ट सर्किट बना के अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन विकसित कर सकते हैं।
जैन धर्म के भी अनुयायी पूरे विश्व में फैले हैं और धन से सक्षम भी हैं. उनके लिए हम ईसा से 599 वर्ष पहले वैशाली गणतंत्र के क्षत्रिय कुण्डलपुर में जन्म लिए जैन धर्म के तीर्थंकर महावीर जैन के जन्म स्थान,गुजरात के कच्छ के जैन मंदिरों, दिल्ली का दिगंबर जैन लाल मंदिर,गोमतेश्वर मंदिर कर्नाटक, रणकपुर मंदिर राजस्थान आदि मंदिरों का एक टूरिस्ट सर्किट बना के इन सक्षम तीर्थ यात्रियों को पर्यटन के लिए आकर्षित कर सकते हैं।
जिस तरह से हमने आगरा को, पिंक सिटी जयपुर को प्रचारित प्रसारित किया और लोगों को आकर्षित किया, उसी तरह भारत की इन टूरिस्ट पूंजीगत धरोहरों का भी भारतीय इकॉनमी के लिए इस्तेमाल होना चाहिये। भारत के पास ये संपत्तियां वर्षों से पड़ी हुई हैं. इस पर किसी का आर्थिक आधार पर दृष्टि नहीं गया।
दृष्टि डालें तो अयोध्या को हवाई मार्ग से उन सभी देशों और नगरों से जोड़ा जाये जहां राजा राम के राज्य का विस्तार हुआ था या संबंध था या वनवास के दौरान वह जहां जहां गये, मसलन अयोध्या-नासिक, अयोध्या-जनकपुर, अयोध्या- श्री लंका, अयोध्या-कंबोडिया, अयोध्या-इंडोनेशिया-बाली, अयोध्या-थायलैंड, एवं अन्य संबन्धित देश, श्री कृष्ण की भी एक सर्किट बनाई जा सकती है जिसमे मथुरा-वृन्दावन को द्वारिका से हवाई मार्ग से जोड़ा जा सकता है । राम , कृष्ण , रामायण एवं महाभारत से संबन्धित स्थानों एवं चीजों का एक अंतर्राष्ट्रीय सर्किट एवं म्यूजियम का निर्माण किया जा सकता है।
अब तक की सरकारों का इस तरफ विशेष दृष्टिकोण नहीं गया है जिसे बहुत पहले चला जाना चाहिये था। इन टूरिस्ट सर्किटों का निर्माण और इनकी धार्मिक विशेषता के आधार पर शहरों का थीम शहर के तर्ज पर विकसित करना कहीं से भी भारतीय संविधान के दायरे में सांप्रदायिक नहीं माना जाना चाहिये, मेरे हिसाब से यह धर्म निरपेक्ष कार्य हुआ। आपने एक शहर को उसके आर्थिक दोहन के हिसाब से उसकी आर्थिक सम्पत्तियों के आधार पर थीम सिटी के रूप में विकसित किया तो इसमें कोई बुराई नहीं है। दुनिया भर की सरकारें कर रही हैं।
सऊदी की सरकार मक्का को विश्व भर में प्रमोट करती है, अंतरराष्ट्रीय सुविधा एयरपोर्ट, पांच से सात सितारा होटल विकसित करती है ताकि वहां दुनिया भर में फैले मुसलमान लोग आयें और सऊदी का पर्यटन विकसित हो हो. उसी तरह विश्व भर में फैले ईसाई समुदाय के लिए वेटिकन सिटी को विकसित किया गया। इन शहरों में आप जाइए .मक्का में जाते ही आप एक थीम महसूस करते हैं,वेटिकन सिटी में जाते ही आप ईसा को महसूस करते हैं, उनके धर्म को महसूस करते हैं, तो यह अच्छा ही होगा कि हम अयोध्या में घुसें और राम को महसूस करें, हिन्दू सनातन हो तो ईश्वर के रूप में, गैर हिन्दू सनातन हो तो एक ऐतिहासिक पौराणिक चरित्र के रूप में राम को महसूस करें और शहर का विकास और वास्तु भी इसी थीम पे हो।
भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है, धार्मिक राष्ट्र नहीं है. यह हिन्दुओं को भी वैसे ही समझता है जैसे अन्य धर्मावलम्बियों को. उसका यह कार्य सिर्फ भारत में बसे हिन्दुओं के लिए नहीं होगा, इसे पूरे विश्व में फैले हिन्दू समुदाय जिसके संयोग से सबसे अधिक महत्वपूर्ण स्थल, आराध्यों के स्थल भारत वर्ष में पड़ते हैं. इसे ऐसा दृष्टिगत कर करना चाहिये। हिन्दू सिर्फ भारत के ही नहीं हैं, कई देशों के हैं, इन हिन्दू समुदायों के लिए भारत मे कोई पर्यटन योजना बनाना कहीं से भी सांप्रदायिक नहीं होगा. आप इन्हे आर्थिक कारक की दृष्टि से वर्गीकृत करें, जब पर्यटन योजना बना रहें हों तो । भारत में हिन्दू (सनातन,आर्यसमाज,जैन,बौद्ध,सि क्ख) के तीर्थ,अजमेर शरीफ, हाजी अली, ताज सबको पर्यटन की दृष्टि में रखकर कार्य करना चाहिये ताकि भारत विश्व का एक बहुत बड़ा टूरिस्ट स्पॉट बन सके और लोग इन स्थानों मे आराम से यात्रा कर सकें।
दूसरा किसी भी देश का पर्यटन उद्योग वहां रहने और बाहर से आने वाले समुदायों की सोच और जीवनशैली के आधार पर ही विकसित होता है। आज भी भारत वर्ष में 90 % लोग अगर बाहर घूमने जाते हैं तो कारण धार्मिक ही होता है। लोगों ने जिन स्थानों को बचपन से सुना है उसको देखना और महसूस करना चाहते हैं। धार्मिक पर्यटन के माध्यम से वो दोहरे फायदे में होते हैं. एक तो वो परिवार को घुमा देते हैं. इसी दर्शन के बहाने और तीर्थ भी हो जाता है। आज भी उत्तर भारत के कई दंपत्ति साल में एक बार घूमने के लिए वैष्णो देवी मंदिर जाते हैं. इसी बहाने उनका एक वार्षिक टूर भी हो जाता है और एक धार्मिक तीर्थ यात्रा भी हो जाती है। सरकार को इसी सूत्र को पकडऩा चाहिये ताकि विश्व भर के हिन्दू यहां पर्यटन भी कर सकें, साथ मे दर्शन भी कर सकें।
धर्मनिरपेक्षता का जब भी प्रश्न आये, शासन को इसका अर्थ ये लेना चाहिए कि सभी धर्मों के प्रति निरपेक्ष भाव रखते हुए उस प्रश्न पर समान भाव से निर्णय लेना है. यह नहीं लेना चाहिए कि उन्हें धर्मों के प्रति उदासीन रहना है या उस प्रश्न को धार्मिक समझ कर निर्णय नहीं लेना है, उससे भागना है. उन्हें बस यही संतुलन रखना होगा कि जैसा सम भाव रख एक के लिए निर्णय लिया है ,वैसा ही सम भाव से दूसरे धर्म का प्रश्न आएगा तो उसी कसौटी पर निर्णय लेना है. अत: भारत जैसे उत्सवधर्मी देश के लिए धर्मनिरपेक्षता के नाम पर धार्मिक पर्यटन को इकॉनमी का मूल इंजन बनाने से चूकना नहीं चाहिए था. इसे अमल में लाना था. अब भी देर नहीं हुई है. वर्तमान से लेकर भविष्य के शासन को धर्मनिरपेक्षता के इसी अर्थ को अमल में लाना चाहिये और यदि इन्हें लगता है तो इस पर बहस करा लेना चाहिए. मेरा मत तो कहता है कि यह सर्व धर्म सम भाव ही है और यदि भ्रम बन रहा है तो शब्द को बदल सर्व धर्म सम भाव ही कर देना चाहिए।
-पंकज गांधी
-पंकज गांधी