चिरकाल से मनीषी, विद्वान हमें यही समझाते आ रहे हैं कि इस संसार में न कोई कुछ लेकर आया है और न कुछ साथ लेकर जायेगा। इंसान खाली हाथ आया है और खाली हाथ जायेगा। यह अर्ध सत्य है।
इंसान जब संसार में जन्म लेता है तो खाली हाथ नहीं आता। निःसंदेह वह भौतिक पदार्थ तो नहीं लाता, किन्तु पिछले शुभ-अशुभ कर्मों के संस्कारों को साथ लाता है और उन संस्कारों के आधार पर बने प्रारब्ध को अपने साथ लाता है और जब वह जाता है तो यहां जो भौतिक सम्पदा अपने जीवन में एकत्र की है वह उसे लेकर नहीं जा पायेगा, किन्तु वह धन सम्पदा कैसे कर्मों के द्वारा पैदा की है, उसका कैसे उपयोग किया है, किसी के वह काम आया है या नहीं, किसी के दुख को अपना दुख समझा है अथवा दूसरों की पीड़ा और दर्द बढ़ाने में ही उसने अपना जीवन नष्ट तो नहीं कर दिया। इसका सब लेखा-जोखा जो उसके चित्त पर अंकित होता रहेगा अपने सूक्षम शरीर के साथ लेकर जायेगा और उसी आधार पर उसे अगला जन्म प्राप्त होगा।
इसलिए हे बन्दे कर्म ऐसे कर जो आगामी जन्म इस जन्म की उपलब्धियों से श्रेष्ठतर उपलब्धियों वाला मिले अथवा उससे भी उचे ऐसे कर्म हो जो पुनः जन्म ही न लेना पड़े। इस आवागमन के जंजाल से ही मुक्ति मिल जाये।