संकीर्ण सोच और दुष्ट स्वभाव वाले दुराचारी, पापी एवं दुर्जन व्यक्ति के साथ मित्रता तथा आत्मीय सम्बन्ध नहीं करने चाहिए। ऐसे लोगों से मित्रता करना तो दूर केवल मात्र उनके संग बैठने से भी बुद्धिमान और श्रेष्ठ व्यक्ति भी सन्मार्ग से भटक जाते हैं उनके ही रंग में रंग जाते हैं।
दुष्टों की संगति कोयले की खान के समान है, जहां पर किसी को कालिख लगना अनिवार्य है। आप कितने भी श्रेष्ठ हो, कितने भी सदाचारी हो, यदि आप दुष्टों की संगति करोगे तो लोग आपकी गणना भी उसी श्रेणी में करेंगे यह स्वाभाविक है।
दुर्गणी, दुर्व्यसनी अपने कुकर्मों से अपने लिए तो विपत्ति आमंत्रित करता ही है साथ ही प्रभावित होने वाले व्यक्तियों के मन में भी विक्षोभ पैदा कर देता है। दुर्गणी अपने और जो उसके सानिध्य में रहने वालों के लिए अभिशाप से कम नहीं, क्योंकि उसकी प्रत्येक गतिविधि समाज में विष फैलाने का ही काम करती है।
प्रबुद्ध समाज में ऐसे लोगों की गणना नरपिशाचों में की जाती है। ऐसे लोगों से दूरी बनाकर रखने में ही अपना और अपने परिवार का हित है।