हे मानव अपनी शक्ति को पहचान, क्योंकि शक्ति से ही तो जीवन है, शक्ति ही धर्म है, शक्ति ही सत्य है, शक्ति ही सब कुछ है। शक्ति ही सर्वत्र आवश्यकता है। शक्ति तुम्हारे अन्दर है, शक्ति तुम्हारे बाहर है, शक्ति सर्वत्र है और शक्ति तुम्हारे रोम-रोम में संचार कर रही है।
सब ओर शक्ति का ही प्रकाश है, अनन्त शक्ति तुम्हारे पीछे है। संसार के विचारों को हृदय से हटा दो और शक्ति के विचारों में ही स्वयं को केन्द्रित कर लो। शक्ति का संचय करो, शक्ति की ही उपासना करो, शक्ति तुम्हें सदा प्रसन्न रखेगी। शक्ति तुम्हें सदा सम्मान दिलायेगी।
शक्ति के रहते तुम्हारा अपमान करने का विचार किसी के भी मन में नहीं आयेगा। इसलिए बलवान बनो, शक्तिमान बनो, निर्भय बनो, वीर बनो, साहसी बनो, तभी सर्वशक्तिमान परमात्मा का सानिध्य प्राप्त कर सकोगे। उसकी अनुकम्पा की पात्रता पाने के अधिकारी बन सकोगे, उसके प्रिय बन सकोगे।
याद रहे निर्बल व्यक्ति किसी के सम्मुख ठहर नहीं पाता, इस कारण उसे कायर समझा जाता है और कायर कभी सम्मान नहीं पा सकता। समय-समय पर उसे अपमान का घूंट पीना पड़ता है। वस्तुत: कोई भी अपमानित होना नहीं चाहेगा। इसलिए शक्ति की शक्ति को पहचानो।