आपके विचार और आपकी भावनाएं जैसी होगी वैसे ही संकल्प विकल्प मन में पैदा होंगे। संकल्प जैसे होंगे वैसा ही वातावरण आपके चारों ओर सृजित होगा। यदि आपके संकल्प में पवित्रता, आशा, उल्लास, प्रेम, प्रसन्नता, उत्साह और आत्म विश्वास की भावनाएं हैं तो आपको अपने चारों ओर यही कुछ दिखाई देगा। आपका वातावरण इन्हीं सांचों में ढलेगा। यदि आपके संकल्प में नीचता, निराशा, घृणा, चिंता, राग द्वेष, वैमनस्य, शत्रुता और निरूत्साह की भावनाएं हैं तो लाख प्रयत्न करने पर भी इनसे नहीं निकल पायेंगे, इन्हीं में घिरे रहेंगे। किसी भी शुभ कार्य में सफलता प्राप्त करने के लिए आवश्यक है कि आपके संकल्प सत्य और पवित्र हों, जिसका मन रोगी नहीं उसका तन कभी रोगी नहीं होगा। जिसका मन हंसता है, उसके होंठ कभी नहीं रोते। दिखने में तो तन बडा दिखाई देता है, परन्तु मन बहुत बलवान है। अस्वस्थ तन में स्वस्थ मन तो रह सकता है, परन्तु अस्वस्थ मन, तन को कभी स्वस्थ नहीं रहने देता। चिंता, ईर्ष्या, द्वेष, शत्रुता तथा अन्य नीच संकल्पों में जन समुदाय को घेर रखा है। यही कारण है रोग उत्तरोत्तर बढ रहे हैं। विज्ञान नित नये आविष्कार करता है, भीषण से भीषण रोगों का इलाज खोजता है तो भी रोग कम नहीं होते। बढते ही जाते हैं। इसका सबसे बडा कारण संकल्प की अपवित्रता तथा भावनाओं की अशुद्धता ही तो है।