प्रभु के सच्चे अनुयायी प्रभु के सच्चे भक्त, प्रभु विश्वासी केवल अपने लिए नहीं, बल्कि समूची मानवता के हित के लिए कार्य करते हैं। निष्काम कर्म की भावना से प्रेरित रहते हुए वे अपना ध्यान केवल कर्म पर रखते हैं, उसके फल की चिंता किंचित भी नहीं करते। प्रभु के ये सच्चे भक्त अपने सभी अच्छे कार्यों का श्रेय स्वयं नहीं लेते ईश्वर को देते हैं। जो प्रभु विश्वासी नहीं हैं अथवा जिसमें विश्वास का अभाव है, उनमें यह भाव अपनी दुर्बलता के कारण है।
विश्वास को सबसे बडी ठेस अहंकार से लगती है। यह अहंकार सभी समस्याओं की जड़ है। इससे अलगाव का भाव पैदा होता है। परायेपन की भावना और दूसरों से अलग और श्रेष्ठ होने का अहसास यह अहंकार ही तो पैदा करता है। इसी कारण हम किसी के न विश्वास पात्र बन पाते हैं और न ही किसी को अपना विश्वास पात्र बना पाते हैं। जैसे सूर्य उदय के साथ हम उसका अस्त होना निश्चित मान लेते हैं और अस्त होने पर हमें दुख नहीं होता उसे स्वाभाविक माना जाता है।
ठीक उसी प्रकार हम और जो कुछ हमारे पास है वह सब अविराम अस्त की ओर जा रहे हैं। उसकी भी वही गति होनी है, जो सूर्य की हुई है। इस सत्य को यदि हम हृदय से स्वीकार कर ले तो हममें न अहंकार आयेगा और न ही हम दूसरों से अपने आपको किसी विशेष श्रेणी में रखने का पागलपन पालेंगे।