दंड से सभी डरते हैं, मृत्यु से सभी भय खाते हैं। ईश्वरीय आदेश है कि अपने समान ही सभी प्राणियों को जानकर किसी को पीड़ा न पहुंचाये, न किसी की हत्या करे, न ही हत्या करने की किसी अन्य को प्रेरणा दें। इन दोनों कार्यों से व्यक्ति समान रूप से पाप का भागी होता है।
जैसा मैं हूं, वैसे ही सब प्राणी हैं, जैसे अन्य सब प्राणी हैं वैसा ही मैं भी हूं। इस प्रकार अपने समान सभी को समझकर न किसी का अहित करे, न ही कराये। संसार के समस्त प्राणी जीवन चाहते हैं, सुख चैन से जीना चाहते हैं। इसलिए सभी जीवों के साथ अहिंसा का भाव रखें।
अहिंसा सभी के जीवन को सुरक्षा प्रदान करती है, क्योंकि अहिंसा सभी को शान्ति का मार्ग दिखाने वाले दीपक का कार्य करती है। अहिंसा सभी प्राणियों के लिए मंगलमय है। अहिंसा माता के समान सभी प्राणियों का संरक्षण करने वाली पाप नाशक तथा जीवन दायिनी है।
अहिंसा अमृत है। शास्त्रीय वचन है कि सभी प्राणियों के प्रति अहिंसा का भाव रखते हुए उनकी रक्षा करें। किसी प्राणी का वध मत करे, किसी का छेदन न करे, किसी को कष्ट न पहुंचाये। मारोगे तो मरना पड़ेगा, छेदोगे तो छिदना पड़ेगा, दुख पहुंचाओंगे तो दुख सहना भी पड़ेगा। मानवता के उत्थान तथा विस्तार का माध्यम ही अहिंसा है। आज के परिवेश में विश्व शान्ति के लिए अहिंसा की अनिवार्यता को समझना होगा।