कितने अचरज की बात है कि मनुष्य को परमपिता परमात्मा ने सब कुछ दिया। अच्छे-बुरे में भेद करने के लिए बुद्धि और विवेक दिया। त्याग, करूणा, सहनशीलता, प्रेम, सौहार्द और कोमलता जैसे गुणों से सरोबर किया। इसके बावजूद वह दुखी है, अशांत है।
यदि परमात्मा के दिये हुए वरदानों का वह सही समय पर सही प्रयोग करे तो उसे किसी प्रकार का संताप ही न हो। यह मत भूलो कि यदि हम दुखी हैं, अशांत हैं, हमारे भीतर अनावश्यक व्याकुलता है तो यह अपने स्वयं के कारणों से है। हमारे सुख जहां हमारे पुण्य के परिणाम है वहां दुखों के लिए हमारे पाप कर्म उत्तरदायी हैं।
यह जानते हुए भी हम अपने दुखों के लिए दूसरों को ही उत्तरदायी ठहरा देते हैं इसलिए हमें मंथन करना चाहिए और दुखों के वास्तविक कारण को समझने का प्रयास करना चाहिए और उस कारण को दूर करने की तत्परता हमारे भीतर होनी चाहिए। भविष्य में दुख न उठाने पड़े उसके लिए केवल पुण्य कर्मों का ही सहारा लें, कोई पाप कर्म करने का विचार तक मन में न आये। जीवन को अपने शुभ कर्मों से स्वच्छ और निर्मल बनाना ही हमारा लक्ष्य होना चाहिए।