हम परमात्मा को पाने के लिए मंदिरों में जाते हैं, तीर्थ यात्राएं करते हैं, सत्संग में जाते हैं, दान, यज्ञ करते हैं, किन्तु हमें भगवान के दर्शन हो ही नहीं पाते। परमात्मा को पाने की उत्कंठा है तो पहली शर्त है स्वार्थ, घृणा, द्वेष, ईर्ष्या और अहंकार जैसे दुर्गुणों को सदा के लिए विदा कर सबसे प्रेम करना सीखें, दूसरों को क्षमा करना सीखें, तभी हमें कण-कण में भगवान के दर्शन होंगे। प्रत्येक चेहरे में परमात्मा दिखाई देगा।
परमात्मा बहुत दयालु है, वह हमारी अनेक त्रुटियों के लिए क्षमा करते है, परन्तु शर्त यह है कि दूसरों को क्षमा करने का जज्बा हममें भी हो। अनजाने में की गई त्रुटि तथा थोड़ी सी असावधानी के कारण हुई भूल को क्षमा करने में प्रभु उदारता दिखाते हैं।
पुनरावृत्ति न करने के संकल्प के साथ की गई याचना को प्रभु स्वीकार कर लेते हैं, परन्तु पाप जो जान-बूझकर किया जाता है उसका फल तो हमें भुगतना ही होगा। अपनी दयालुता के कारण क्षमा मांगने पर प्रभु सद्बुद्धि का वरदान देते हैं ताकि हम नेकी का मार्ग पकड़ लें और पाप मार्ग का त्याग कर दें।