शारदीय नवरात्र हो अथवा बासन्ती नवरात्र हो उनका शरीर शुद्धि के साथ-साथ आत्म शुद्धि मुख्य उद्देश्य है, क्योंकि आत्म शुद्धि के अभाव में अन्य उपलब्धियों का कोई मूल्य नहीं। आत्मशुद्धि के लिए प्रार्थना से बढकर दूसरा कोई साधन नहीं।
प्रार्थना याचक में प्रभु के प्रति समर्पण का भाव जगाती है। अहंकार को समाप्त करती है, अन्त:करण को शुद्ध और सशक्त बनाती है। पापमय जीवन से उबरने के लिए प्रार्थना नौका का कार्य करती है। इच्छा शक्ति का विकास करती है, जिससे जीवन को सही दिशा मिलती है।
प्रार्थना केवल सर्वशक्तिमान, सर्वज्ञ, सर्वव्यापक, सर्वपालक परमेश्वर से ही करना उचित है। अन्य किसी से प्रार्थना करना भीख मांगने के समान है, हृदय से की गई प्रार्थना को परमेश्वर अवश्य सुनता है। प्रार्थना में केवल समाज का राष्ट्र का और समस्त विश्व का कल्याण मांगे।
अपने लिए केवल सद्बुद्धि मांगे, आरोग्य मांगे ताकि स्वस्थ शरीर द्वारा उपकार के कार्य किये जाते रहें, किन्तु अधिकांश व्यक्ति प्रभु से की जाने वाली प्रार्थना में अपने लिए धन, ऐश्वर्य, सम्मान तथा सन्तान प्राप्ति के लिए ही ईश्वर से प्रार्थना करते हैं, जो स्वार्थ है और स्वार्थी की प्रार्थना परमेश्वर को स्वीकार्य नहीं।