धर्म, वाद-विवाद का विषय नहीं धर्म तो धारण किया जाता है, आचरण में लाया जाता है। धर्म तो आस्था है, विश्वास है। आप कितना पूजा-पाठ करते हैं मंदिर जाते हैं, तीर्थों के दर्शन करते हैं, कितने व्रत-रोजे रखते हैं, कितने बड़े नमाजी हैं, कितने बड़े पुजारी हैं, सुखमनी साहब का पाठ कराते हैं या नहीं परमात्मा इन सब क्रियाओं को नहीं देखता।
वह केवल आपके व्यवहार, आचरण और चिन्तन को देखता है। आप अपने आचरण और व्यवहार में कितने ईमानदार हैं, सत्यनिष्ठ हैं, कर्तव्यनिष्ठ हैं, परमात्मा को उसी क्षण पता चल जाता है, बल्कि मनुष्य के भीतर कार्य योजना के भाव जब जाग्रत हो जाते हैं, तभी ज्ञान हो जाता है, क्योंकि ईश्वर तो सबके हृदयेश्वर है, सबके हृदय में निवास करते हैं। सर्वज्ञ है, सर्वत्र है अर्थात सब कुछ जानते हैं हर स्थान पर है।
इसलिए कभी किसी का अनिष्ट मत चाहो, अनिष्ठ न करो तथा अपने किये गये पाप को छुपाने का प्रयास भी मत करो, साथ ही दूसरे के पापों का प्रचार भी मत करो अन्यथा जितना पाप का भागी वह होगा, जिसने पाप किया है, आपको भी कुछ अंश तक उस पाप का भागी होना पड़ेगा, साथ ही किसी पर झूठा दोषारोपण करोगे तो दोगुने पाप के भागी बनोगे। परमात्मा के कोप से बचने और उनका प्यार पाने के लिए पाप कर्मों से अपने को बचाओ।