जैसे-जैसे आदमी का मानसिक विकास होता जाता है उसकी आवश्यकताएं भी बढ़ती जाती हैं। वह भौतिक पदार्थों की प्रचुरता पाने की इच्छाएं करने लगता है। जरूरी नहीं कि आदमी को इच्छित सभी पदार्थ प्राप्त होते रहें। उन्हें पाने के लिए उसे कुछ न कुछ संघर्ष तो करना ही पड़ता है फिर जरूरी नहीं कि उसकी सभी इच्छाएं पूरी हो जायें।
कोई ऐसी वस्तु जिसे पाने का प्रयास किया गया उपलब्ध नहीं हो पाई, तो भी प्रसन्न मन से उसे पाने का प्रयास पुन: करना चाहिए, इससे निराशा नहीं होगी।
भगवान श्रीराम को अयोध्या की गद्दी के बजाय बनवास मिल गया फिर भी वे विचलित नहीं हुए। ऐसी घटनाओं से सीख लेनी चाहिए। प्राय: चित्रों में भगवान को मुस्कराते हुए चित्रित किया गया है, इसका आश्य यही है कि जहां मुस्कराहट है, वहां भगवान है, जबकि दैत्यों के चित्रों में तनाव, क्रोध दिखाया जाता है, यदि कोई तनाव में है तो इसका अर्थ है उसके आसपास से भगवान हट गये हैं और दैत्य आ गये हैं।
इसलिए सुख हो या दुख हर स्थिति को झेलने की शक्ति सकारात्मक सोच से ही प्राप्त की जा सकेगी। हंसी प्राप्त करना है तो हर समय भौतिक पदार्थों में डूबे रहने से बचना होगा। कुछ समय स्वयं को और ईश्वर चिंतन के लिए भी दे। इससे तनाव दूर होगा और मन को शान्ति मिलेगी।