दान की महिमा से सभी परिचित हैं। यथा शक्ति दान करना भी सभी को चाहिए, किन्तु यह अवश्य सोचे कि जो दान हम कर रहे हैं, उसमें ईमानदारी, त्याग, परिश्रम, निष्ठा, विवेक तथा न्याय का कितना अंश है। झूठ, ठगी, अनाप-शनाप, पाप, जन्य कमाई से दिया गया दान पुण्य व्यर्थ है। ऐसे धन से दान किया तो क्या किया।
जो दान किया उसे कमाने के लिए कितना पसीना बहाया, कितनी ईमानदारी बरती, कितनों को सुख तथा अपनेपन का अहसास कराया, यह विचार अवश्य कर लो। यदि कमाई सच्ची है तो उसके एक रूपये का दान भी बेईमानी की कमाई से किये करोड़ों रूपये के दान से भी बढ़कर श्रेयष्कर है। अन्याय के जंगल में अनीति तथा अमर्यादाओं के अस्त्रों से अपार धन बटोरकर, जनता के धन को लूटकर अर्थात सरकार को चूना लगाकर, गरीब का दिल दुखाकर, लाचारों का खून चूस कर, किसी का हक मारकर कमाये धन से दान पुण्य किया भी तो उसका कोई फल तुम्हें नहीं मिलेगा।
यहां तक कि अनैतिक कमाई के लिए जो पाप की गठरी सिर पर बांधी है, उससे भी छुटकारा नहीं मिलेगा। दान तो वही है, जो नेक कमाई का हिस्सा हो। पाप की कमाई से किये दान से अच्छा है न पाप की कमाई की जाय न दान किया जाये।