आज के युग में उन्नति का अर्थ केवल आर्थिक उन्नति माना जाता है। उन्नतिशील व्यक्ति उसे कहा जाता है, जो धनवान हो, किन्तु मात्र आर्थिक उन्नति अधूरी है, क्योंकि धन तो किसी के भी पास हो सकता है। उन्नति का वास्तविक अर्थ है व्यक्ति की सर्वांगीण उन्नति अर्थात आर्थिक के साथ-साथ शारीरिक, मानसिक तथा सामाजिक उन्नति, मात्र आर्थिक उन्नति को ही उन्नति मान लेना भारी भूल है।
यदि व्यक्ति की शारीरिक उन्नति होगी, शरीर स्वस्थ और सुदृढ होगा तो उसकी पुरूषार्थ करने की सामथ्र्य बनी रहेगी। रोगी तथा शरीर से हीन व्यक्ति निरन्तर परिश्रम करने में असमर्थ रहेगा और वह पुरूषार्थ के प्रति उदासीन हो जायेगा, उसकी उन्नति का मार्ग अवरूद्ध हो जायेगा। व्यक्ति की मानसिक स्थिति अच्छी होगी तो उसकी बुद्धि सही दिशा में कार्य करेगी। उसे अच्छे-बुरे का ज्ञान होगा, उसका चिंतन भी रचनात्मक होगा। उसका प्रभु में ध्यान भी लगेगा, जब व्यक्ति का आचरण श्रेष्ठ होगा, उसका व्यवहार श्रेष्ठ होगा तो उसमें दूसरों के प्रति सेवा भाव होगा।
समाजोपयोगी कार्यों में उसकी रूचि होगी। वह श्रेष्ठ समाज की स्थापना के लिए निरन्तर प्रयत्नशील होगा, ताकि समाज में कुरीतियां न आये, एक-दूसरे के साथ सहयोग की भावना हो। सबकी उन्नति में अपनी उन्नति समझे तो समाज में उसे प्रतिष्ठा मिलेगी। इसलिए मात्र आर्थिक उन्नति से ही संतोष कर लेना तर्क संगत नहीं होगा।