अंगद वन का शेर बहुत चतुर तथा शक्तिशाली था, नित्य ही जंगल के स्वस्थ जानवरों का शिकार करके अपना पेट भरता था। शेर की चुस्ती-फुर्ती के सामने किसी भी जानवर का वश नहीं चलता था कि वह स्वयं को शेर का भोजन बनने से बचा सके।
समय बीतता गया। एक एक करके जंगल के अनेक स्वस्थ जानवर शेर का शिकार बन चुके थे। कुछ जानवर शेर से बचने के लिए जंगल छोड़कर भाग गए। अब जंगल में जानवरों का अकाल पड़ गया। शेर को अपने लिए भोजन जुटाने की खातिर दूर-दूर तक भटकना पड़ता तथा जो भी जानवर शेर के सामने कमजोर और लाचार दिखाई देता, शेर उसे ही अपना शिकार बनाकर अपनी भूख मिटाता।
एक बार शेर को तीन दिन तक कोई शिकार नहीं मिला तो वह व्याकुल होकर जंगल में इधर से उधर भटकने लगा, आखिर थक हारकर वह एक गुफा के द्वार पर बैठ गया।
यकायक शेर को दूर से एक खरगोश आता हुआ दिखाई दिया, खरगोश उछल कूद मचाता हुआ अपने घर की ओर जा रहा था, जैसे ही खरगोश की नजर शेर पर पड़ी, तो वह बुरी तरह घबरा गया, उसने भागना चाहा, किंतु शेर की अंगारों सी दहकती आंखों को देखकर वह सहम गया, उसके पांव कांपने लगे। इसी बीच शेर ने उसे अपने पंजों में दबोच लिया। खरगोश रूआंसा हो गया, उसने शेर के सामने विनती की-स्वामी…आप जंगल के शक्तिशाली राजा हैं, मैं आपके जंगल का बहुत छोटा और कमजोर जानवर हूं….यदि मेरा शिकार करने से आपकी भूख शान्त हो जाए तो मुझे कोई आपत्ति नहीं है….मगर मुझे लगता है कि मेरा शिकार करने के बाद आप बहुत पछताएंगे…।
शेर ने खरगोश की विनती को ठुकारते हुए कहा-नन्हें खरगोश….मुझे बुद्धू मत बनाओ….. मैं तीन दिन से भूखा हूं….तुम्हें खाकर ही मैं अपनी भूख मिटाऊंगा। खरगोश तनिक भी विचलित नहीं हुआ, उसने कहा-स्वामी….भूख का नियम है…यदि अधिक भूख लगने पर कम भोजन किया जाता है, तो भूख और तेज हो जाती है….इसलिए मेरा सुझाव है कि जब तक तुम्हें कोई बड़ा शिकार नहीं मिलता….तब तक मेरा शिकार न करें, तभी अच्छा है,जैसे ही कोई बड़ा शिकार मिल जाए तो पहले मुझे खा लेना, फिर बड़े शिकार से भूख शान्त कर लेना। खरगोश की बात शेर की समझ बैठा रहा। बहुत देर तक शिकार की प्रतीक्षा करते करते शेर को नींद आ गयी। खरगोश ने शेर को जब सोते हुए पाया, तो वह दबे पांव वहां से भाग निकला और कुलांचे भरता हुआ अपने घर पहुंच गया। शेर सोकर उठा तो उसने पाया कि खरगोश वहां से जा चुका है, उसे अपनी मूर्खता पर बड़ा क्रोध आया।
(डॉ. सुधाकर आशावादी-विनायक फीचर्स)