जन्म के पल जीवन में सर्वश्रेष्ठ पल होते हैं। सभी को उत्सुकता से उसके आने की प्रतीक्षा होती है। उसके जन्म लेने पर सभी को हर्ष होता है। उसके जन्म से पूर्व ही उसके भविष्य को लेकर कई सुनहरे सपने देख लिए जाते हैं। वह जैसे-जैसे बड़ा होता है। जीवन की कठोर वास्तविकता जुड़ती चली जाती है। आशाएं छूटती जाती हैं, आशावादिता सुख का सबसे बड़ा स्रोत है। जब जीवन में आशा बलवती होती है तो मनुष्य का मन स्वयं भी प्रफुल्लित रहता है। उसकी कार्य क्षमता बढ़ जाती है। आशाओं से रहित मनुष्य भी कार्य करता है, किन्तु उसमें प्रफुल्लता और रूचि का अभाव होता है। कार्य एक विवशता और कर्तव्य बन जाता है। ऐसे कार्यों से भले ही धन अर्जित कर लिया जाये, पद प्रतिष्ठा प्राप्त हो जाये, किन्तु उल्लास का अभाव रहता है। आशाओं का सम्बन्ध अंतर्मन से हैं। आशाएं जब पूरी होती है, मन को संतुष्ट करती है, जबकि धन, पद, शक्ति का अर्जन कामनाओं को उत्प्रेरित करता है और संवेग बढाता है। लेना मनुष्य का चरित्र है, जबकि देना ईश्वरीय तत्व है। केवल वही दे रहा है युगों-युगों से दे रहा है, लेने-पाने की आशा, आशा नहीं कामना है। अधिक की कामना न कर ईश्वर जो दे रहा है, उसी में संतुष्ट रहना सीखें।