Friday, September 20, 2024

अनमोल वचन

प्राय: हम कहते हैं कि सच्चा आनन्द बचपन में प्राप्त होता है। उस आयु में कोई चिंता होती ही नहीं, बस आनन्द ही आनन्द अनुभूत होता है। उसका कारण यह है कि बच्चे अच्छा ही सोचते हैं, अच्छा ही देखते हैं और उन्हें मात्र अच्छा ही पाने की इच्छा रहती है। आप भी अपने लिए यह नियम बना लीजिए कि आप अपनी परिस्थितियों की कभी शिकायत नहीं करेंगे न किसी बात अथवा किसी व्यक्ति पर प्रकृट अथवा अप्रकृट रूप से कुढेंगे या चिडेंंगे। जब तक आप इन कारणों से दुखी होते रहेें, तब तक आप केवल निष्क्रिय ही नहीं रहेंगे, बल्कि आप अपने मस्तिष्क को अंधकारमय भी बनाये रखंगे। आप उपलब्ध परिस्थितियों की ओट में छिपे प्रकाश और सुअवसरों को देखने से भी वंचित रहेंगे। आत्मग्लानि और दुभाग्यग्रस्त होने की भावना अच्छाई के आलोकमय विचारों को मस्तिष्क में प्रवेश करने से उसी प्रकार रोक देती है, जिस प्रकार खिड़की के शीशे पर जमी धूल सूर्य के प्रकाश को कमरे में प्रवेश करने से रोक देती है। इसलिए जब कभी आप में प्रकृट या अप्रकृट रूप में निंदा करने की प्रवृत्ति पैदा हो अपने मस्तिष्क और वाणी को रोकिए और तत्काल स्वयं से पूछिए कि उस परिस्थिति, वस्तु अथवा व्यक्ति में अच्छाई क्या है। इस प्रकार आपको धीरे-धीरे अच्छाई देखने का अभ्यास हो जायेगा, जो आनन्द भय जीवन के लिए अनिवार्य है और आप उस बाल सुलभ आनन्द को पुन: प्राप्त कर सकते हैं, जिसके बारे में आप सोचते हैं कि वह बाल्यावस्था में ही चला गया।

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