भक्ति मिल जाये, यश भी मिल जाये परन्तु यदि अहंकार आ जाये तो सब कुछ मिट जाता है। भगवान से सदा श्रद्धा, नम्रता मांगना शालीन बने रहना। मैं भी आपसे कहूंगा कि भगवान से सदा श्रद्धा, भक्ति, नम्रता की कृपा मांगे। उनसे कहना ‘हे भगवान श्रद्धरा में कमी न करना नहीं तो मैं तेरे चरणों से दूर हो जाऊंगा। भगवान मुझे अपने चरणों में रखना, दूर न करना, श्रद्धा भक्ति बढ़ाते रहना ताकि मैं धर्म से विमुख न हो जाऊं। धर्म क्या है? धर्म है क्षमा, धर्म है दया, धर्म है धैर्य, धर्म है दमन (इन्द्रियदमन) धर्म है सत्य को अपनाना, धर्म है क्रोध से बचना, धर्म है बुद्धि का विकास करना। इन सबको जो अपना लेता है वह शील से युक्त हो जाता है, जो शील से युक्त होता है वह सदा सुखी रहता है। भगवान भगवान ही है। जब उनकी दयालुता, भक्त वत्सलता और कोमल स्वाभाव की स्मृति होती है तो चित्त गद्गद् हो जाता है। हृदय असीम आनन्द से भर जाता है, इच्छा होती है कि मैं अपने प्रभु की दया में समा जाऊं, उनकी गोद में बैठे-बैठे ही अस्तित्वहीन हो जाऊं अर्थात जब प्राण निकले, इस जीवन की यात्रा समाप्त हो तो उस समय भी मेरा मन प्रभु भक्ति में ही हो, उसी का ध्यान करते हुए इस नश्वर शरीर का त्याग करूं।