Monday, March 31, 2025

अनमोल वचन

आज महर्षि बाल्मीकि की जयंती है। इस पुनीत अवसर पर उनके द्वारा रचित रामायण के कुछ प्रसंगों की चर्चा सामयिक ही होगी। बाल्मीकि रामायण में कोई एक प्रसंग जो बार-बार हृदय को मथता है, वह राम का वन गमन है। साढे नौ लाख वर्ष हो गये हैं इस घटना को कितने ही युग, वर्ष, मास, दिन बीते, कितनी ही कथाएं, कितने ही चरित्र हमारी चेतना से उठकर चुपचाप चले गये। बाल्मीकि के राम त्रेता युग में जैसे थे वैसे ही ठहर गये, ऐसे ठहरे कि साक्षात अभी-अभी नीर नयन हम उन्हें वन जाते हुए देख आये हों। बाल्मीकि के राम अर्थात विवेक राम अर्थात पर दुख का तरता राम अर्थात स्वयं को क्लांत कर दूसरों को विश्रांति देना। तमसा नदी के तट पर वे भोर बेला में जागे। लक्ष्मण और सीता से चुपचाप नदी पार करने को कहा। वे चाहते थे कि उनके पीछे चली आई अयोध्या की जनता के जागने से पूर्व ही तमसा का तट त्याग दिया जाये। राम का वन गमन विरह और दुख भाव पर लिखे हजारों पृष्ठों के शाश्वत साहित्य की प्रस्तावना भी है, प्रथम अध्याय भी और उपसंहार भी। उसे त्याग कर उस शाश्वत साहित्य का पारायण सम्भव नहीं है और उसे सर्वप्रथम रचने वाले महाकवि बाल्मीकि ही थे।

- Advertisement -

Royal Bulletin के साथ जुड़ने के लिए अभी Like, Follow और Subscribe करें |

 

Related Articles

STAY CONNECTED

75,563FansLike
5,519FollowersFollow
148,141SubscribersSubscribe

ताज़ा समाचार

सर्वाधिक लोकप्रिय