प्रात: सायं प्रभु से प्रार्थना इस प्रकार करें। ‘हे प्रकाश स्वरूप परमेश्वर आपकी कृपा से जिस बुद्धि की उपासना विद्वान, ज्ञानी और योगी लोग करते हैं वैसी ही बुद्धि मुझे भी प्रदान करें। आप प्रकाश स्वरूप है, कृपा कर मुझमें भी प्रकाश की स्थापना कीजिए। आप अनन्त पराक्रम युक्त हैं आप मुझमें भी वह पराक्रम पैदा करे।
आप अनन्त बल युक्त हैं, मुझमें भी बल धारण कराये। आप अनन्त सामथ्र्य युक्त हैं मुझे भी पूर्ण सामथ्र्यवान बनाये। आप निंदा स्तुति और स्व अपराधियों को सहन करने वाले हैं कृपा करके मुझमें भी वह गुण पैदा कीजिए। आप न्यायकारी हैं कृपा करके मुझे भी न्याय मार्ग पर चलाइये मुझे यह ज्ञान तो है कि इस प्रार्थना का लाभ हमें तभी मिलेगा कि जैसे गुण परमात्मा के हैं वैसे ही गुण, कर्म, स्वभाव अपने में भी पैदा करने का उद्यम करे, परन्तु उसकी प्रेरणा और शक्ति तो मुझे परमात्मा से ही प्राप्त होनी है। जैसे मैं कहता हूं कि परमात्मा आप न्यायकारी है मुझे भी न्याय मार्ग पर चलाईये।
आप निंदा स्तुति सहन करने वाले हैं मुझमें भी वह सहनशक्ति प्रदान करे। न्याय मार्ग पर चलने के अभ्यास की प्रेरणा मुझे देते रहिए। अपनी शक्ति को बढाने का अभ्यास तो मुझे ही करना होगा, परन्तु उसके लिए मुझे शक्ति तो आपसे ही मिलेगी फिर भी इसी प्रकार परमात्मा के अन्य गुणों को धारण करने का प्रयास नहीं करेंगे केवल भांड के समान परमात्मा के गुण कीर्तिन करते अपने चरित्र को ऊंचा बनाने का प्रयास नहीं करेंंगे तो ऐसी स्तुति-प्रार्थना करते रहना व्यर्थ है।