‘तत्वमसि’ अर्थात तू वही है तू तत्व रूप है। क्योंकि तुम परमपिता परमात्मा के अंशी हो इस कारण तुम्हारा मूल स्वभाव परमात्मा है। तुम्हारी उस सत्य के अतिरिक्त कोई दूसरी पहचान है ही नहीं। समस्त ब्रह्माण्ड में उसी की सत्ता है, उसी की लीला है, उसी का खेल है। उसी में तुम हो, उसी से तुम हो। उसके बिना तुम्हारा अस्तित्व ही नहीं। उसे दूर समझना भ्रांति है। इस भ्रांति को ज्ञान से दूर कर लोगे तो मोक्ष की प्राप्ति हो जायेगी।
परमात्मा आपके भीतर है, आप के साथ है, इसलिए चलते-फिरते, उठते-बैठते, सोते-जागते परमात्मा की समीपता का अनुभव करें। उसकी उपस्थिति की अनुभूति करिये कि कोई मेरे साथ है। उसे अपने सब शुभ कार्यों में सम्मिलित करिऐ। ऐसो आभास करिए कि जहां आप जा रहे हैं, वहां आप परमात्मा का हाथ पकड़कर चल रहे हैं, जब प्रभु आपके साथ है फिर डरने का घबराने का कोई कारण ही नहीं है।
एक बात सदैव स्मरण रखे कि परमात्मा की भक्ति मोक्ष का द्वार खोलती है, किन्तु मूर्ति पूजा तथा मंदिरों में जाकर घंटियां बजाने से परमात्मा के बनाये बंदों की सेवा करना अधिक श्रेष्ठ है, बड़ी भक्ति है और उनमें भी वयोवृद्धों, रोगियों और अभावग्रस्तों, भूखे-प्यासों की सेवा उच्चतम है। परमात्मा आपके जिन कार्यों से प्रसन्न हो वही भक्ति है, वही पूजा है।