एक दो बार आपसे भूल हुई हो तो आप अपने आपको समझाइये कि पहली भूल थी, अनजाने में हुई फिर भी दंड तो मिलना ही चाहिए। दंड के रूप में तुम इतना अधिक ध्यान साधना करना या फिर आज का भोजन नहीं करना या आज तुम्हें दो घंटे मौन होकर बैठना अथवा किसी पात्र व्यक्ति को, किसी दुखी को, दीन को आज सहायता देनी है।
एक घंटे के लिए अस्पताल जाईये प्रेम के साथ रोगियों की सेवा करिए। अपने दंड को स्वयं ही चुने और दंड ऐसा हो, जिसमें किसी का हित हो, किसी का भला हो, किसी की सहायता करेंगे, उसका पुण्य आपको प्राप्त होगा।
उससे आपके मन को संतोष प्राप्त होगा तथा शान्ति भी मिलेगी, प्रायश्चित करना आवश्यक होता है। आत्म सुधार के लिए ये प्रक्रियाएं बहुत आवश्यक हैं। जिस स्थान पर आप साधना करते हो उस स्थान को अच्छा बनाना चाहिए। अपने घर को मंदिर का वातावरण दीजिए, पवित्रता रहनी चाहिए। कलह क्लेश से दूर रहकर शान्तिमय वातावरण बना रहना जरूरी है, जहां महापुरूषों के पग पड़ते हो, संतों की कृपा हो, यदा-कदा धार्मिक कार्य होते रहते हो, वहीं पर स्वर्ग है।