प्राय: हम संसार में आकर यह भूल जाते हैं कि हम यहां क्यों आये हैं? परमात्मा ने हमें भेजा किसलिए है? यहां आकर हम स्वयं के साथ परमात्मा को भी भूलने लगते हैं, जिसके फलस्वरूप जीवन में समस्याएं आने पर हम विचलित हो जाते हैं। समस्याओं का सामना करने में हमारी सामर्थ्य ही असमर्थ होने लगती है।
हमारे और परमात्मा के मध्य जो भौतिकता का आवरण है वही हमें प्रभु से दूर करता है। भौतिकता के प्रति हमारा आकर्षण दिनोंदिन बढ़ता जाता है, परमात्मा और हमारे मध्य समानान्तर दूरी बढती जाती है। इस अन्तर को हमें सदैव ध्यान रखना चाहिए।
हमें यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि परमात्मा की इस सृष्टि में मानव ही सर्वोत्कृष्ट रचना है। अत: मानव से अपेक्षाएं भी अधिक होना स्वाभाविक है। यदि जीवन के सत्य को जानना है तो सर्वप्रथम स्वयं को जानना होगा कि इस मानव शरीर की उपयोगिता क्या है और हम कहां तक इसमें खरे उतरे। यही सफल जीवन की कसौटी है।