जैसा मन वैसा तन। जब कोई बूढ़ा न होने की ठान लेता है तो वह चिरयुवा बना रहता है तथा अंत तक सक्रिय और सक्ष्म भी। वस्तुत: मनुष्य उतना ही बूढा अथवा जवान है जितना वह अनुभव करता है। बुढापा तन का कम मन का अधिक होता है। मन जवां तो तन जवां।
आपकी सोच की दिशा इसमें सबसे महत्वपूर्ण है। अत: सोच में सकारात्मक परिवर्तन द्वारा सदैव युवा बने रहे तथा सक्रिय जीवन व्यतीत करे। रचनात्मक कार्यों में व्यस्त रहेंगे तो आप स्वयं को कभी वृद्ध होने का अहसास करेंगे ही नहीं। निष्क्रियता तो जवान को भी बूढ़ा बना देती है।
सक्रिय जीवन जीने वाला कभी बूढा होता ही नहीं। एक बात और आप अनुभवों को धन की तरह संचित न करे। अपने निजी अनुभवों को समय रहते बांटते रहना चाहिए, जिससे दूसरे भी उसका लाभ उठा सके। अन्य लोगों को इन अनुभवों का लाभ उठाते देखकर जो आपको सुखानुभूति होगी, उससे आपके युवा बने रहने में सहायता मिलेगी, जैसे परमार्थ के कार्य करने में आत्म सुख का अनुभव होता है वैसा ही सुख आपके अनुभवों का लाभ दूसरों को उठाते देखने में भी होगा।