मृत्यु अटल है, जिसने जनम लिया है, उसे कभी न कभी मृत्यु का वरण करना ही होगा। इससे अनेक बार कोई भी बच सकता है, किन्तु एक बार कोई भी नहीं बच सकता। अनादि काल से यही सृष्टि चक्र चल रहा है। जो पैदा होता है वह अच्छा बनकर रहे अथवा बुरा मृत्यु का वरण दोनों को ही करना पड़ेगा। जीवन में मनुष्य अनेक बार रोगी बनता है।
हर व्यक्ति को बचाने के प्रयास होते हैं, वह अनेक बार बच भी जाता है, परन्तु एक बार वह दिन अवश्य आता है, जब कोई औषधि काम नहीं करती, उसे मरना ही पड़ता है, मृत्यु का सामना करना ही पड़ता है। कई बार धनी व्यक्ति रोगी होने पर चिकित्सा हेतु विदेश जाता है अथवा विदेश से चिकित्सक को बुला लेते हैं, परन्तु क्या विदेश में लोग नहीं मरते, वहां भी मरते हैं।
मृत्यु से बच जाना सम्भव है, किन्तु मृत्यु से बचे रहना सम्भव नहीं है, मृत्यु का आलिंगन आस्तिक को भी करना पड़ेगा और नास्तिक को भी। हिन्दू को भी करना पडग़ा और मुस्लिम को भी। देश में रहने वालों को भी करना पड़ेगा और विदेश में रहने वालों को भी। यह सब जानते हुए भी हम ऐसे श्रेष्ठ कर्म क्यों नहीं करते, जिससे बार-बार की मृत्यु से छुटकारा मिल जाये और हम मुक्ति को प्राप्त कर लें।