ईश्वर को प्राप्त करने के लिए उसे समझना आवश्यक है। उसके गुणों को आत्मसात करना आवश्यक है। मनौती मनाने और प्रार्थना करने मात्र से प्रभु प्राप्ति नहीं होती। प्रार्थना के अनुसार स्वयं को ढालना पड़ता है। आप प्रार्थना करेंगे कि हे
ईश्वर तु मेरे प्राणों की रक्षा कर, मुझ पर दया कर, मेरा परिवार उन्नति करे, मेरा मान-सम्मान बढे, मुझे सफलता मिले। ईश्वर तो आपके प्राणों की रक्षा करेगा ही, दया भी करेगा, परन्तु आप भी किसी के प्राणों की रक्षा के निमित्त बने, आप भी दूसरों पर दया और करूणा बरसाये, दूसरों की सहायता करें, दूसरों का सम्मान करें। सफलता और परिवार की उन्नति के लिए प्रयास करे, पुरूषार्थ करे, निष्ठा से अपने कर्तव्यों का पालन करे।
की गई प्रार्थनाओं की पात्रता अपने भीतर पैदा करें। उदात्त चिंतन और परिष्कृत व्यक्तित्व के राज मार्ग पर चलकर ही उस प्रभु को पाया जा सकता है, उसकी कृपायें प्राप्त की जा सकती है। मौखिक प्रार्थनाओं से निराशा के अतिरिक्त कुछ हाथ आने वाला नहीं है।