आस्तिक का आग्रह है कि ईश्वर है और नास्तिक का आग्रह है कि परमात्मा नहीं है। दोनों के विश्वास मान्यता और आग्रह से निर्मित हुए हैं। जाना दोनों ने नहीं है, अनुसंधान दोनों ने नहीं किया है।
किसी वस्तु के मान लेने से अथवा नकार देने से उसका होना या नहीं होना सिद्ध नहीं होता। आस्तिक का विश्वास है कि ईश्वर है और उसके अस्तित्व के संदर्भ में वह बहुत से प्रमाण प्रस्तुत करता है। ठीक वैसे ही नास्तिक ईश्वर के नास्तित्व के सिद्ध करने के लिए बहुत से तर्क देता है, परन्तु दोनों ही ने जाना ही नहीं है। दोनों का धरातल धारणा और मान्यता के रूप में समान है।
चीन में सिखाया जाता है कि परमात्मा नहीं है और भारत में सिखाया जाता है कि परमात्मा ही परम पिता है, उसी से पूरी सृष्टि की रचना हुई है। एक के मानने और दूसरे के न मानने से क्या कुछ अन्तर पड़ता है। चीन के लोगों में जैसा काम, क्रोध, लोभ आदि अवगुण हैं, वैसे ही भारतीयों में भी हैं। नास्तिक भी दूसरों को धोखा देता है और आस्तिक भी दूसरों के साथ कपट करता है।
सच में आस्तिक वह है, जो अनुसंधान करता है, अपनी बुद्धि को तार्किक बनाता है और जो उसकी बुद्धि की प्रयोगशाला में सत्य सिद्ध हो उसे ही ग्रहण करता है।