कान में जो सुनने की शक्ति है, मन में जो मनन करने की शक्ति है। वाणी में जो बोलने की शक्ति हे, प्राण में जो संचालन की शक्ति है, आंखों में जो देखने की शक्ति है वह शक्ति देवात्मा की है, जो जीवन का संचार करती है। आत्मा है क्या? आत्मा धूप के साथ जुडी हुई छाया की तरह है।
उसका अस्तित्व परमात्म सत्ता पर अवलम्बित है। जैसे सूर्य की धूप चन्द्रमा को प्रकाशित करती है। जैसे चन्द्रमा की चांदनी ले धरती प्रकाशवान होती है, उसी प्रकार परमात्मा की सत्ता आत्मा पर प्रतिबिम्बित होती है और फिर उसकी ज्योति इन्द्रियों को आलोकित करके उन्हें संवेदनाएं अनुभव करने योग्य बनाती है, उन्हें क्रियाशील बनाती हैं।
आप परमपिता परमात्मा की संतान है, महान उद्देश्यों के लिए आपकी रचना की गई है। ईश्वर ने आपको सामान्य जीवन जीने के लिए नहीं बनाया है। ऐसा करने के लिए उसने आपको योग्यता, अन्तर्दृष्टि, प्रतिभा, बुद्धि और अलौकिक शक्तियां दी हैं। आपके पास ईश्वर प्रदत्त अपनी नियति को पूरा करने के लिए प्रत्येक अनिवार्य इन्द्रिय मौजूद हैं। उनका सदुपयोग अथवा दुरूपयोग आप पर निर्भर है।