Friday, April 25, 2025

बैंक ऑफ बड़ौदा को नीलाम की गई सम्पत्ति को कर्जदार को ’अवैध’ तरीके से लौटाने पर लगाई फटकार

प्रयागराज । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हाल ही में बैंक ऑफ बड़ौदा की कार्रवाई पर खेद जताया है, क्योंकि न्यायालय ने नीलामी प्रक्रिया पूरी करने और सफल बोलीदाता (नीलामी क्रेता) से बयाना राशि स्वीकार करने के बावजूद, नीलाम की गई सम्पत्ति को कर्जदार (मूल उधारकर्ता) को वापस कर दिया। कोर्ट ने बैंक ऑफ बड़ौदा की इस कार्रवाई को “मनमाना, सनकी और स्वेच्छाचारी“ बताया।

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न्यायमूर्ति शेखर बी. सराफ और न्यायमूर्ति डॉ. योगेन्द्र कुमार श्रीवास्तव की पीठ ने बैंक के आचरण को “अवैध और मनमाना“ मानते हुए उसके खिलाफ सख्त कार्रवाई की मांग की और बैंक को निर्देश दिया कि वह नीलामी क्रेता को बयाना राशि पर 24 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से ब्याज का भुगतान करे।

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न्यायालय ने यह भी कहा कि बैंक की पूरी कार्रवाई सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित सिद्धांतों के विपरीत थी। खंडपीठ ने कहा, “इस विशेष मामले में बैंक की उपरोक्त कार्रवाई स्पष्ट रूप से कानून के दायरे से परे, मनमानी, मनमौजी, स्वेच्छाचारी और कानून में स्थापित सिद्धांतों के बिल्कुल खिलाफ है। बयाना राशि स्वीकार करने के बाद नीलामी क्रेता को सम्पत्ति बेचने के बाद, बैंक किसी भी तरह से उधारकर्ता के साथ एकमुश्त योजना में प्रवेश करके मूल उधारकर्ता को सम्पत्ति वापस नहीं कर सकता था,“ खंडपीठ ने बैंक को 30 अप्रैल को पूरी निर्दिष्ट राशि के लिए डिमांड ड्राफ्ट के साथ अदालत में आने के लिए कहा है।

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अदालत ने यह आदेश सौरभ सिंह चौहान द्वारा दायर रिट याचिका पर सुनवाई करते हुए पारित किया, जिन्होंने सरफेसी अधिनियम के तहत उक्त सम्पत्ति के लिए सफलतापूर्वक बोली लगाई थी। उन्होंने दावा किया कि बैंक ने एकमुश्त निपटान योजना के तहत सम्पत्ति (जिसके लिए उन्होंने पहले ही बयाना राशि का भुगतान कर दिया था) मूल उधारकर्ता को वापस कर दी।

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यद्यपि बैंक की ओर से वकील तथा स्वयं बैंक ने अवैध कार्रवाई के लिए बिना शर्त माफी मांगी, फिर भी पीठ ने बैंक को निर्देश दिया कि वह नीलामी क्रेता को क्षतिपूर्ति के रूप में 24 प्रतिशत ब्याज दर के साथ बयाना राशि वापस करे। कोर्ट मामले की अगली सुनवाई 30 अप्रैल को करेगी।

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