कष्टदायी अतीत को भूलकर मनुष्य को वर्तमान में जीना चाहिए, क्योंकि यह निश्चित है कि कष्टदायी अतीत को याद करने से वर्तमान भी कष्टदायी हो जाता है, यदि किसी व्यक्ति का अतीत अभावों और यातनाओं में बीता हो और वर्तमान सामान्य सुखों से भरपूर हो और वह उन सुख के दिनों में भी अतीत के कष्टकों को याद करते रहे और परिचितों के साथ भी उनकी चर्चा करते रहे तो वह वर्तमान के सुखों से वंचित ही रहता है।
अतीत में जीने वाले ऐसे व्यक्ति के कारण पूरा परिवार एक कलहयुक्त वर्तमान में जीता है। इसलिए मनीषी कहते हैं कि अतीत में नहीं वर्तमान में जीओ। वर्तमान का कर्म ही हमारे भविष्य के भाग्य का निर्माण करेगा। भविष्य उसी की मुटठी में होता है, जिसके पैरों के नीचे वर्तमान होता है।
ईश्वर भी विद्यमान सत्ता का ही परिचायक है। इसलिए वर्तमान में जीना अपने साथ जीना है, परमात्मा के साथ जीना है, सत्य के साथ जीना है और यही जीना सार्थक भी है।