अंधविश्वास एवं पाखंड एक ऐसा रोग है जो मनुष्य के सोचने-समझने की क्षमता को ही नष्ट कर देता है और इनके आधार पर जो परम्परा एवं विचारधारा जन-जन में रच-बस जाती है, उसमें सुधार लाना बहुत ही कठिन हो जाता है। सत्य का प्रत्येक आग्रही यह जानता है कि ये अंध परम्परा गलत है फिर भी कोई इसके विरोध के लिए जनता के क्रोध का सामना नहीं करना चाहता। प्रतिकूल विचारधारा को अपनाकर अपने मार्ग पर चलाना पैने छूरे के धार पर चलने के समान है। ऐसे पाखंडों तथा अंधविश्वासों को फैलाने वाले मठाधीशों से सामना करने का साहस दिखाना महर्षि दयानन्द ने जिनकी आज 201वीं जन्म जयन्ती है। उन्होंने मानव कल्याण की भावना का ख्याल रखकर प्रतिकूल परिस्थितियों में भी चलना स्वीकार किया। परिणाम स्वरूप उन्हें अनेक बार जहर दिया गया, ईंट, पत्थर मारे गये, उन पर सांप छोडे गये तथा अनेकों षडयन्त रचे गये। अन्त में दया के सागर दयानन्द की हत्या तक करवा दी गई। ये हत्या करवाने वाले भी कोई गैर धर्मी नहीं अपितु अपने को गर्व से हिन्दू कहने वाले समाज के लोग ही थे।