मन की निर्मलता, सहजता ईश्वर का मानव को दिया गया अनुपम वरदान है। निर्मलता हमें नर से नारायण बना देती है। निर्मल मन सुख-शान्ति का आधार है। मनुष्य की सबसे बड़ी उपलब्धि है, जबकि मन की मलिनता हमें हमारे स्वभाव से विभाव में ले जाती है। भावनाओं को अस्थाभाविक मोड़ देकर हमें राग द्वेष और क्षोभ से भर देती हैं। निर्मल मन कोमल और स्निग्ध होता है, जबकि मैले मन में छल-कपट, राग-द्वेष घर करने लगते हैं। विडम्बना यह है कि हम भौतिक जीवन में तो नित्य नूतन परिवर्तन चाहते हैं, परन्तु मानसिक भावनात्मक और वैचारिक जीवन में आदि मानव के संस्कारों से ही चिपके हुए हैं। मानव जीवन की पूर्णता के लिए शारीरिक और मानसिक, बौद्धिक और भावनात्मक विकास, अविद्या और विद्या की साधना समान महत्व रखती है। एक की उपेक्षा और दूसरे को महत्व देने से जीवन असंतुलित हो जाता है। मन की निर्मलता के लिए सबसे पहले अनिवार्य है प्रेम और करूणा की भावना। जब तक हम दूसरों का शोषण कर व्यवहार और अपने स्वार्थों के पोषण में ही लगे रहेंगे, तब तक निर्मलता हमसे दूर भागरती रहेगी। हमारे आवेग, विक्षेप, संकल्प, विकल्प हमें शक्तिहीन बनाये रखेंगे।