एक संत संगत को उपदेश कर रहे थे कि हमने संसार को सुन्दर बनाये रखना है कि नहीं, घरों के वातावरण को सुखद बनाना है कि नहीं, हमें कटु स्वभाव से ही युक्त रहना है या फिर मधुर स्वभाव वाले बनकर रिश्तों में मधुरता लानी है कि नहीं! संगत से आवाज आती है- हमें घरों को स्वर्ग बनाना है, समाज में सुन्दरता लानी है, संसार में शांति स्थापित कर उसे सुन्दर रूप देना है, परन्तु सच्चाई यह भी है कि केवल कहने भर से ऐसा नहीं होगा।
यदि शक्कर की चर्चा करते रहें पर मुख में न डाली जाये तो क्या मुंह मीठा हो जायेगा? नहीं होगा। पानी का नाम लेते रहने से प्यास नहीं बुझेगी, जब तक वह पीया नहीं जायेगा। धन-दौलत की बात करते रहने से कोई धन का स्वामी नहीं बनेगा। उसे परिश्रम से कमाना पड़ेगा। यदि मात्र सोच लेने अथवा चर्चा कर देने मात्र से धनवान बना जाता तो दुनिया में कोई गरीब न होता।
हम उपदेश सुनते भी है, सतशास्त्रों में पढ़ते भी हैं, किन्तु उस पर चिंतन मनन कर उसे जब तक अपने आचरण और व्यवहार में नहीं लायेंगे, तब तक न हम अपने स्वभाव में महानता नहीं ला पायेंगे, जिससे हमारे गृहस्थ, समाज, देश और यह सारा भू-मंडल सुन्दर बन सकेगा।