भारतीय संस्कृति में नारी को सर्वोच्च स्थान दिया जाता है। नारी के गुणगान से इतिहास के पन्ने भरे पड़े हैं। उसे त्याग, दया, करूणा, ममता और धैर्य की प्रतिमूर्ति कहा जाता है। भारतीय नारी पुरूष को प्रतिष्ठा और उपलब्धि के सर्वोच्च शिखर पर आरूढ करने के लिए स्वयं के प्राणों को भी दांव पर लगा दिया करती हैं। महिलाएं हमारे समाज का गौरव हैं। नारी शक्ति का योगदान न हो तो समाज का विकास ही सम्भव नहीं। इसलिए नारी सदा से ही सम्मानीय रही हैं और उसका सबसे पूजनीय रूप मां और पुत्री का ही रहा है। नारी कभी दया की पात्र नहीं रही। आज महिला विश्व के किसी भी क्षेत्र में पुरूषों से कम नहीं। कहीं-कहीं तो कार्य की गुणवत्ता की दृष्टि से उसका स्थान पुरूषों से अच्छा ही रहा। समाज के विकास में महिलाओं की भूमिका अत्यन्त महत्वपूर्ण होती है, समाज में स्थिरता, मजबूती और सामंजस्य का होना मुख्यत: महिलाओं पर ही निर्भर करता है, क्योंकि महिलाएं ही समाज का एक सशक्त आधार है। नारी को ही प्रथम गुरू, शिक्षक माना जाता है, क्योंकि भौतिक जननी के साथ-साथ वह बच्चे के संस्कारों की जननी भी होती है, परन्तु वह अच्छे संस्कार तभी दे पायेगी, जब वह स्वयं सुसंस्कारित होगी। इसके लिए आवश्यक है कि कन्याओं के लिए गुरू कुलीय शिक्षा का प्रबन्धन सरकार का उत्तरदायित्व बनें।