वेद के आधार पर महर्षि मनु ने धर्म के दस लक्षण बताये हैं, जो निम्र प्रकार है। 1. धृति अर्थात धैर्य अर्थात कठिनाईयों में भी स्वयं को सम्भाले रखना, न घबराना। 2. क्षमा-शक्ति व सामथ्र्य होते हुए भी दूसरे की गलती को माफ कर देना। 3. दम- मन एवं इन्द्रियों को वश में करना (समाधि के बिना यह सम्भव नहीं)। 4. अस्तेय-चोरी न करना, मन वचन और कर्म से किसी धन पदार्थ का लालच न करना। 5. शौच- शरीर मन एवं बुद्धि को पवित्र रखना। 6. इन्द्रियनिग्रह- अर्थात आंख, वाणी, कान, नाक, त्वचा एवं कामेन्द्रिय आदि को वासनाओं से बचाना। 7. घी- बुद्धिमान बनना अर्थात प्रत्येक कर्म को सोच-विचार कर करना बुद्धि को श्रेष्ठ बनाना। 8. विद्या- सत्य विद्या तथा ज्ञान को ग्रहण करना। 9. सत्य- सत्य बोलना तथा सत्य का ही आचरण करना। 10. अक्रोध- क्रोध न करना क्रोध को वश में करना। इन दस नियमों का पालन धर्म है। यदि ये गुण लक्षण किसी भी व्यक्ति हैं तो वह पूर्ण धार्मिक है। फिर भी सामान्य व्यक्ति के लिए धर्म की साधारण परिभाषा यह है कि किसी भी जीव के साथ भूलकर भी वह व्यवहार न करे जो व्यवहार आपको अपने साथ पसंद नहीं। इसके विपरीत आचरण अधर्म की संज्ञा में आयेगा।