कर्म योनि अर्थात मनाव योनि प्राप्त करके भी मानव अशुभ कर्मों को नहीं छोड़ पाता है, शुभ कर्म करने में उसके पेट में दर्द हो जाता है कि करे, नहीं करे, करे कि नहीं करे और अशुभ कर्म करने के लिए सदैव तत्पर रहता है। कर्म अशुभ करोगे और फल चाहोगे शुभ और सौभाग्य। बोओगे बबूल और चाहोगे आम कैसे? कैसे होगा यह। आपने कभी ख्याल किया आप कितने होशपूर्वक अपने कर्म करते हो आप कितने होश से अपने जीवन को जीते हो। किसी ने आपकी मनमर्जी की बात न की तो आप क्रोधित हो जाते हो फिर क्रोध में अपने होश गंवा देते हो और बेहोशी में वे शब्द कह देते हो कि जो अशोभनीय हो और अश्लीलता की श्रेणी में आते हैं। जब क्रोध का बुखार उतरता है तो पछताता है, इसी प्रकार जब यह ज्ञान हो जाता है कि मेरे दुर्भाग्य का कारण मेरे अशुभ कर्म है तो पुन: न करने की शपथ भी लेता है, परन्तु यह जो मन की दुर्बलता है फिर उन्हीं दुष्कर्मों में खींच ले जाती है और दुर्भाग्य का क्रम चलता रहता है।