आदमी की अनेक दुर्बलताओं में से एक दुर्बलता यह है कि वह अपने से अलग दूसरों के लिए कुछ करता है तो अपना नाम चाहता है, उसका प्रचार चाहता है। साधारण सी उपलब्धि अर्जित कर ले तो पूरा श्रेय लेने का प्रयास करता है। स्वयं को इतना प्रचारित करता है कि उपलब्धि पीछे छूट जाती है।
परमात्मा का यह स्वाभाव नहीं है। उसने इतनी विशाल और वैविध्यपूर्ण सृष्टि की रचना की है, जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती। इसके बावजूद परमात्मा ने कभी स्वयं को प्रकट नहीं किया। वह असंख्य जीवों को नित्य जन्म दे रहा है, उनके पालन-पोषण के लिए जल, वायु, अग्रि के साथ ही खाद्य पदार्थ दे रहा है। यह सब उसने कभी भी सामने आकर नहीं किया।
परमात्मा ही सब कुछ तो कर रहा है। उसने हमें जीवन दिया, आहार दे रहा है, मन की कामनाएं पूरी कर रहा है। वही एक दर है, जहां पर कोई भी किसी भी समय कुछ भी मांग सकता है। उसका दरबार हमेशा खुला रहता है। उस पर विश्वास करें और जीवन की डोर उसे सौंपकर निश्चिन्त हो जाएं।
उसे प्रेम के द्वारा पाया भी जा सकता है। मछली को ज्ञात नहीं कि सागर में कितना जल है, किन्तु वह सागर में रहकर आनन्दित है। मनुष्य को नहीं पता कि परमात्मा कैसा है, कहां रहता है, कैसे वह रचना करता है और सृष्टि को संचालित करता है, किन्तु यदि वह प्रेम भावना से परमात्मा को समर्पित है, तो सुखी है, आनन्द में है।