Monday, March 10, 2025

मुजफ्फरनगर में शिक्षा की अलख जगा रहे है बिजली कर्मचारी भारत सिंघल, झोपड़ी वालों को बना रहे शिक्षित

 

मुज़फ्फरनगर। देश में मिड डे मील के भरोसे गरीबों को शिक्षा देने के बड़े अभियान चलाए जाते हैं लेकिन मौके पर जाकर देखें तो स्थिति बहुत सकारात्मक दिखाई नहीं देती है लेकिन मुजफ्फरनगर में एक ऐसे नौजवान हैं,जो अपने संसाधनों से ही गरीब बच्चों को शिक्षा देने की अलख जगा रहे हैं। वह भीख मांगने वाले गरीब बच्चों को नशे से मुक्त करने का अभियान भी चलाए हुए हैं।

मुजफ्फरनगर में बिजली विभाग के बाबू है भारत सिंघल। सत्यम की पाठशाला के नाम से अपनी पाठशाला चलाते है जिनमें वे सड़कों पर भीख मांगने वाले और कूड़ा चुगने वाले बच्चों को पढ़ा रहें है। झुग्गी-झोपड़िया में रहने वाले मासूम बच्चों के लिए एक उम्मीद की किरण बनकर काम कर रहे है।

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भारत का कहना है कि शिक्षा व्यापार नहीं है, शिक्षा एक सेवा है, जिसको आज बड़े-बड़े उद्योगपतियों ने व्यापार बना दिया है। उन्होंने बताया कि मेरा शुरू से ही ऐसे बच्चों के प्रति लगाव रहा है जो सड़कों पर भीख मांगते हैं या कूड़ा बीनने का काम करते हैं।

उन्होंने बताया कि हमारी एक क्लास रेलवे स्टेशन रोड पर चलती है और दूसरी क्लास रुड़की रोड पर चुंगी के पास एक झोपड़ी में चलती है। कभी स्कूल न जाने वाले बच्चों को पढ़ाई के लिए प्रोत्साहित कर उन्हें आगे बढ़ने का रास्ता दिखा रहे हैं।

भारत सिंघल ने बताया कि अपनी ड्यूटी से पहले और बाद के टाइम में निस्वार्थ रूप से बच्चों को पढ़ाता हूं और बच्चों को पढाने की शुरुआत डेड वर्ष पहले एक छात्र से की थी और आज शहर के दो अलग-अलग स्थानों पर हमारी पाठशाला लगती है। जिसमें लगभग 60-65 बच्चे रोजाना पढ़ने के लिए आते हैं।

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उन्होंने बताया कि हमारी क्लास में ऐसे बच्चे भी आते हैं जिनके माता-पिता नहीं है और वह सड़कों पर भीख मांगते हैं या कूड़ा चुगते है और कुछ ऐसे बच्चे भी हैं,जो आर्थिक रूप से बहुत कमजोर है। स्कूल या ट्यूशन की फीस नहीं दे सकते।

भारत सिंघल नें बताया कि मुज़फ्फरनगर के लोग मेरी बहुत मदद करते हैं और सभी जरूरी चीज यहां के लोगों ने ही मुझे दी है और मैं किसी से पैसा नहीं लेता हूं। बच्चों को हिंदी-इंग्लिश और गणित की बेसिक नॉलेज दी जाती है, जिससे उनका बेस मजबूत हो और वह आगे बढ़ सके।

भारत नें बताया कि हम लगातार यहां पर बच्चों के ब्रेन को डेवलप कर रहे हैं जिससे वह कूड़ा बीनने और भीख मांगने की आदत को छोड़ सके।

उन्होंने बताया कि हाल ही में दो लड़कियों का एडमिशन खतौली कस्तूरबा गांधी विद्यालय में कराया है वह दोनों लड़कियां पढ़ने में बहुत तेज थी। उन्होंने बताया कि एक लड़का अंगद जो पहले कूड़ा चुगने का काम करता था। उसको मैंने पढ़ाया और अब वह लड़का रेलवे स्टेशन के सामने ही मोटरसाइकिल और स्कूटर की दुकान पर रिपेयरिंग का काम सीख रहा है। जिसमें वह आधा काम सीख भी चुका है।

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पाठशाला में पढ़ने वाली एक मासूम छात्रा गौरी ने बताया कि वह दो महीने से सर के पास पढ़ती है और वह पैसे नहीं लेते बल्कि कॉपी,किताब और पेन्सिल भी अपने पास से ही देते हैं। गौरी ने बताया कि वह आगे बढ़कर फौजी बनना चाहती है ।

सत्यम की पाठशाला में पढ़ने वाले तीरथ ने बताया कि मैं यहीं साईं धाम के सामने रेलवे स्टेशन पर झोपड़ी में रहता हूं और मेरे मम्मी-पापा कूड़ा चुगते हैं और मैं 1 साल से यहीं पर पढ़ रहा हूं। तीरथ ने बताया कि यहीं पर मैंने महीनों के नाम, दिनों के नाम, ABCD, अ से अनार, गिनती और पहाड़े सीखें है। उसने बताया कि सर यहां पर खाने के लिए भी देते रहते है।

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रुड़की रोड की झुग्गी-झोपड़ी में रहने वाले बच्चों ने बताया कि वह अभी एक महीने से ही सर के पास पढ़ रहे है। बड़े होकर क्या करेंगे यह पूछने पर बच्चिया बोलती है कि वह शादी करेगी ।

भारत ने बताया कि यहां के लोगों में शिक्षा का इतना अभाव है कि वह 16 से 18 साल के बीच में ही लड़कियों की पैसे लेकर शादियां कर देते हैं और वह अपनी लड़कियों को ऐसी ही शिक्षा देते हैं।

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