मानव जीवन प्राणी को प्रभु का दिया सर्वोच्च वरदान है, क्योंकि सभी योनियों में केवल मानव है जिसे अच्छे-बुरे की पहचान का विवेक प्रभु ने दिया है। इस जीवन का प्रत्येक पल एक सुअवसर है। इसके एक-एक पल को हम कितनी सार्थकता के साथ सदुपयोग करते हैं, इसी पर जीवन की सफलता निर्भर करती है, जो व्यक्ति समय का सदुपयोग करता है अज्ञान और दुख उसका साथ छोड़ जाते हैं। जो मन का दास है, जो पुरूषार्थ हीन है, आलसी है, नैतिक साहस से शून्य है, उसी मनुष्य को अज्ञान और दुख अपने घेरे में ले लेता है। ऐसे व्यक्ति के जीवन में सुख की कल्पना भी नहीं की जा सकती। भौतिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए धन आवश्यक है। धन के बिना जीवन निर्वाह असम्भव है। इसलिए धन की कामना करना और धन कमाना मनुष्य का स्वाभाविक गुण है, परन्तु समस्या तब आती है, जब धन को साधन के बजाय साध्य बना दिया जाता है। साध्य को प्राप्त करने के लिए आदमी के भीतर नैतिक अनैतिक का भेद समाप्त हो जाता है। वह अपने चरित्र और स्वास्थ्य दोनों का शत्रु बन जाता है, परन्तु याद रखिए जब तक आप स्वस्थ हैं, तब तक सारी दुनिया आपके साथ है, परन्तु जिस दिन आपका शरीर साथ नहीं देगा उस दिन दुनिया तो क्या आप अपने परिजनों के लिए भी भार बन जायेंगे। धन कमाने में लापरवाही कर लेना परन्तु स्वास्थ्य की कभी उपेक्षा न करना। केवल स्वस्थ शरीर ही जीवन भर साथ निभायेगा।