आदमी जीवन भर अपनी और अपने परिवार की प्रगति के लिए धन कमाने और संग्रह करने में लगा रहता है।आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए धन तो कमाना चाहिए, परन्तु इसके साथ अपने और परिवार के अतिरिक्त मानवता के लिए भी कुछ ऐसा करें, जिससे जाने के बाद भी लोग उसे याद करें। परिवार के साथ-साथ समाज और राष्ट्र धर्म का भी पालन करें।
अभी तक अपनों के लिए बहुत जिये अब कुछ पर हित के लिए भी जिएं, उनके लिए जो समाज की मुख्य धारा से वंचित हैं, निराश्रित हैं, असहाय हैं, बेसहारा हैं। आप यदि उनके चेहरे पर हंसी ला सकते हैं तो समझिए आपका जीना सार्थक हो गया, क्योंकि जब जीवन का अंतिम समय आयेगा तो आपसे यह नहीं पूछा जायेगा कि आपने शिक्षा कितनी प्राप्त की, कितना धन कमाया, कितने मकान बनाये, बल्कि यह पूछा जायेगा कि आपने अच्छा क्या किया है?
झूठी अकड़, झूठे दिखावे में कुछ नहीं रखा है। आपसी प्रेम और भाईचारे के सहारे मनुष्य अप्रतिम संगठन तैयार कर सकता है। दूसरों को सम्मान देकर अपने और पराये का भेद मिटा सकता है।
ध्यान रहे, जिंदगी हर पल वैसे ही ढल रही है, जैसे मुट्ठी से रेत फिसलती है। वह एक दिन जरूर आयेगा, जब लोग जगायेंगे पर आप उठोगे नहीं। इसलिए आज ही अच्छा करने के लिए उठिए, जागिए और चल पड़िये, क्योंकि सब कुछ यहीं धरा रह जायेगा।