जिस मनुष्य का जन्म हुआ है उसकी मृत्यु भी निश्चित होगी। जिस समय मनुष्य जन्म लेता है, उसी समय उसकी मृत्यु का समय भी निश्चित कर दिया जाता है।
मृत्यु वास्तव में जीवन में बड़े अंकुश की तरह है। हाथी पर यदि अंकुश न हो तो वह अपने और दूसरों के लिए भी संकट पैदा कर सकता है। मनुष्य निर्भय हो माया और विकारों में इतना लिप्त हो जाता है कि पापों का भारी बोझ एकत्र कर लेता है। इससे मनुष्य का अपना जीवन तो गर्त में जाता ही है, साथ ही समाज में अनाचार बढ़ता है।
जिस व्यक्ति को अपना अन्त सामने दीखता है, उसे परमात्मा भी दिखाई देता है। मृत्यु का भय परमात्मा का भय है अथवा यह कहें कि मृत्यु के भय के कारण जीव परमात्मा से भी डरता है। इस भय से मुक्ति भी परमात्मा की शरण में जाकर ही मिलती है।
मन स्व तत्व जब परम तत्व (ईश्वर) के आगे समर्पण कर देता है और वह अपने शस्त्रों को नीचे रख देता है तो परम तत्व की कृपा बरसती है। परमात्मा का भय भावना और प्रेम में बदलने लगता है।
द्वन्द्व रहित मन ही परमात्मा से जुड़ता है, इस भाव को समझने से ही मनुष्य मात्र का कल्याण हो सकता है।